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Three hundred thousand ridden, no money for treatment

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कोरबा - बाल्को के सेवानिवृत्त कर्मचारी को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन उसे गरीबी और लाचारी का दंश झेलना पड़ेगा। उसने अपने परिवार के भविष्य के लिए साई प्रसाद चिटफंड कंपनी में तीन लाख रुपए जमा कराए थे। यह राशि उन्होंने एजेंट के झांसे में आकर मकान बेचकर दी थी। अब जब बाल्को कर्मी बिस्तर पर पड़ा हुआ है। पत्नी चल फिर नहीं पा रही है। पुत्र व पुत्री बेबस हैं। परिवार को खाने-पीने के लिए भी मोहताज होना पड़ रहा है। ऐसे में जमा पूंजी मिलने की आस टूट गई है।



मूलतः बिहार निवासी बीडी ओझा (67) बाल्को संयंत्र में कार्यरत थे। वे 7 साल पहले सेवानिवृत्त हुए। इस दौरान उन्हें कंपनी की ओर से करीब आठ लाख रुपए प्रदान किए गए। श्री ओझा ने सेवानिवृत्ति के बाद परिवार के साथ सुखपूर्वक गुजर-बसर करने भदरापारा में एक मकान व दुकान का निर्माण कराया। इसके साथ ही वे किराना दुकान का संचालन करने लगे। इससे मिलने वाली सीमित आमदनी से वे अपनी पत्नी शोभा देवी (63), निःशक्त पुत्र उमेश व पुत्री रूपा का भरण पोषण कर रहे थे। धीरे- धीरे परिवार दुकान की कमाई से परिवार का खर्च चलना भी दूभर हो गया। लिहाजा दुकान को बंद कर दी गई। इस श्री ओझा की मुलाकात मोहल्ले में ही रहने वाले साई प्रसाद चिटफंड कंपनी के एजेंट जामपनिहा और एक युवती से हुई। जामपनिहा ने श्री ओझा को कंपनी में रकम जमा कराने पर प्रतिमाह एक निश्चित राशि मिलने की जानकारी दी। साथ ही मूलधन निर्धारित अवधि में वापस किए जाने की बात कही। श्री ओझा ने रकम जमा करने में असमर्थतता जता दी। बाद में जामपनिहा के झांसे में आकर उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई से बनाई गई दुकान को तीन लाख रुपए मे बेच दिया। इस रकम को जामपनिहा और उसके साथ पहुंची युवती के हाथों कंपनी में जमा करा दिया। दो माह तक जामपनिहा ने वादे के मुताबिक 3-3 हजार रुपए की राशि पहुंचाई, लेकिन तीसरे माह से राशि मिलनी बंद हो गई। जब श्री ओझा ने जामपनिहा के पास जाकर पूछताछ की तो वह गोलमोल जवाब देने लगा। इस बीच श्री ओझा एजेंट के चक्कर लगाते रहे, लेकिन न तो रकम मिली और न ही निश्चित आमदनी की राशि दी गई। इस घटना के बाद परिवार की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती गई। श्री ओझा के सामने एक ओर अपने दोनों निःशक्त बच्चों के परवरिश की चिंता थी, तो दूसरी ओर गाढ़ी मेहनत की कमाई को खोने का गम। इस चिंता में उनकी और उनके पत्नी की भी तबियत बिगड़ती गई। श्री ओझा की बूढ़ी पत्नी कभी पास में ही स्थित एजेंट के घर पहुंचती तो है, लेकिन वहां ताला लटका मिलता है। गरीबी का दंश झेल रहा यह परिवार अब अपने जीवन भर की कमाई वापस मिलने की उम्मीद छोड़ चुका है।



शिकायत करने वाला कोई नहीं



पुलिस लोगों से आए दिन चिटफंड कंपनियों के संबंध में सूचना देने कहती है। किसी भी पीड़ित से शिकायत मिलने पर मामले की जांच कर कार्रवाई करने के दावे किए जाते हैं, लेकिन इस मामले में स्थिति ही कुछ और है। परिवार का मुखिया लंबे समय से बिस्तर में पड़ा हुआ है। पत्नी किसी तरह चल फिर कर भोजन बनाने के अलावा परिवार की देख-रेख में जुटी रहती है। पुत्र शारीरिक रूप से निःशक्त होने के कारण ज्यादा भाग-दौड़ नहीं कर पाता। वह किसी तरह भिक्षाटन का परिवार का भरण-पोषण करने राशन की व्यवस्था करता है। ऐसे में भला इस परिवार का कोई सदस्य मामले की शिकायत और कार्रवाई के लिए थाना चौकी का चक्कर कैसे लगा सकता है।



रातोंरात रईस बन रहे एजेंट



एक ओर चिटफंड कंपनी के झांसे में आकर अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई को गवां रहे हैं, दूसरी ओर कंपनी के कर्मचारी और एजेंट रातों रात रईस बनते जा रहे हैं। इसके कई उदाहरण देखे जा सकते हैं।



रोजवेली के एजेंट की भी शिकायत



एक अन्य मामले में सर्व पिछड़ा वर्ग महासभा छत्तीसगढ़ प्रदेश के जिलाध्यक्ष माधव प्रसाद जायसवाल ने कलेक्टर पी दयानंद को एक पत्र लिखकर रोजवेली नामक चिटफंड कंपनी के एक एजेंट से रकम दिलाते हुए कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि एसजीपी कालोनी वार्ड क्रमांक 54 निवासी कुलदीप चंद्रा अपने आपको रोजवेली चिटफंड कंपनी का संचालक बताते हुए लोगों को चूना लगा रहा है। वार्ड में रहने वाले गरीब मजदूरों की जमापूंजी को दोगुना करने का झांसा देकर लाखों रुपए जमा कराए गए। तीन माह पहले कंपनी के बंद होने की जानकारी मिलने पर वार्डवासी अपने रकम की मांग कर रहे हैं, लेकिन एजेंट लोगों को गोलमोल जवाब देते रकम देने ने में आनाकानी कर रहा है।



See Also: चिटफंडी राघवेंद्र को रिमांड पर लेने के लिए आई उज्जैन पुलिस


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  • 04 December, 2015
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