कई वर्ष पीछे चलते हैं। ”शारदा घोटाला“ अभी-अभी उजागर हुआ ही था। मीडिया में आवाज उठ रही थी कि पश्चिम बंगाल में सरकारी अल्पबचत योजनाएँ मरनासन्न हैं, इसीलिए चीट फंड वालों के लिए अनुकूल स्थिति बन गई है।
यह मांग भी हो रही थी कि सरकारी अल्प बचत योजनाएँ फिर से चालू हों ताकि चिटफंड के मगरमच्छों से लोग बचें तभी, शायद आलोचना से बचने के लिए ही, ममताजी ने कई अल्प बचत योजनाएँ शुरु की। आज उनकी जो दशा है, उस पर एक नजर डालना शायद उचित हो- खासकर यह समझने के लिए अल्पबचत के प्रश्न पर ममताजी कितनी गंभीर है:-
वित्तीय वर्ष जमा राशि (रुपये में)
2013-14 2 करोड़ 50 लाख 46 हजार
2014-15 72 लाख 23 हजार
2015-16 34 लाख 25 हजार
ममताजी ने घोषणा की थी कि 6 राष्ट्रीयकृत बैंक भी उनके साथ सहयोग कर रहे हैं। पर केवल युनाइटेड बैंक आॅफ इंडिया को छोड़ अन्य किसी बैंक को उनकी सरकार के साथ सहयोग करते नहीं देखा गया (अल्प बचत योजना के मामले में)।
ममताजी हमेशा पश्चिम बंगाल के साथ केन्द्र सरकार द्वारा सौतेला व्यवहार किए जाने का रोना रोती हैं। अल्पबचत योजनाओं में जो राशि जमा होती है उनका एक खास हिस्सा केन्द्र द्वारा राज्य में निवेश करना होता है, यह वह जनता को नहीं बतातीं।
अल्प बचत योजनाओं को मरणासन्न बना देने के लिए जिम्मेवार कौन है? उनके मरणासन्न बन जाने से पश्चिम बंगाल को जो क्षति हुई, उसकी भरपाई कौन करेगा?
सवाल कई हैं, जवाब एक का भी नहीं, मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल के अनुसार अल्प बचत योजनाओं के लिए 24 हजार एजेन्ट बहाल किए जाने थे, लेकिन अब तक सिर्फ 654 एजेंट बहाल किए गए, क्यों?
See Also: करोड़ों की मार गए ठगी, पुलिस बचाने में लगी