मुंबई। बृहन्मुंबई महानगरपालिका [बीएमसी] के 2034 की मास्टरप्लान से सहारा समूह की लॉटरी लगने वाली है। क्योंकि अब सहारा समूह अपने मुंबई के गोरेगांव स्थित प्लॉट को बेचकर 20,000 करोड़ रुपये जुटा सकेगा। मुंबई के जिस इलाके में सहारा समूह का प्लॉट है, वहां फिलहाल रेसिडेंशियल या कमर्शियल निर्माण पर रोक है। लेकिन बीएमसी की योजना के लागू होने के बाद यह रोक हट जाएगी।
गौरतलब है कि सहारा समूह के चीफ सुब्रत रॉय एक साल से ज्यादा वक्त से तिहाड़ जेल में बंद हैं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक सहारा समूह को रॉय की जमानत के लिए 10,000 करोड़ रुपये नकद या बैंक गारंटी के तौर पर जमा करने हैं। इस रुपये को जुटाने में सहारा समूह की गोरेगांव (पश्चिम) में स्थित 106 एकड़ प्लॉट की बड़ी भूमिका हो सकती है। पहले इस प्लॉट का इलाका नो डेवलपमेंट जोन था, क्योंकि यह मलाड के समुद्री तटीय इलाके में है और यह कड़े तटीय विनिमयन क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
लेकिन ग्रेटर मुम्बई के विकास की नई योजना के मसौदे में इस जमीन को नो डेवलपमेंट जोन हटाकर यहां कमर्शियल और रेसिडेंशियल निर्माण को मंजूरी प्रदान करने की बात कही गई है। इसके तहत गोरेगांव (पश्चिम) स्थित 500 एकड़ के प्लॉट में बिल्डिंग निर्माण के लिए 3.5 फीसदी एफएसआई की मंजूरी मिलेगी।
प्रापर्टी विश्लेषकों के मुताबिक अगर इस योजना को मंजूरी मिल जाती है तो सहारा के 106 एकड़ के प्लॉट की कीमत 20,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। गौरतलब है कि रॉय को निवेशकों को 24,029 करोड़ रुपये लौटाने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है।
मलाड के पास स्थित 500 एकड़ के समूचे प्लॉट का ज्यादातर हिस्सा बैरमजी जीजीभॉई समूह के पास है। इस जमीन का एक हिस्सा मेट्रो और मोनो रेल के यार्ड के लिए भी आरक्षित है। लेकिन अब उस आरक्षित हिस्से के भी रेसिडेंशियल और कमर्शियल इस्तेमाल को मंजूरी देने की योजना बनाई गई है।
अभी यह योजना शुरुआती दौर में ही है, लेकिन डेवलपर्स अभी से इसमें रुचि दिखाने लगे हैं। बिल्डर अविनाश भोंसले औऱ विकास ओबेराय ने इस जमीन को डेवलप करने में रूचि दिखाई है। साल 2013 में सहारा समूह ने अपनी इस जमीन के कागजातों को सेबी के हवाले यह कहते हुए किया था कि इसकी बाजार में 19,300 करोड़ रुपये कीमत है। ताकि सेबी इसे बेचकर निवेशकों का 20,500 करोड़ रुपये लौटा सके। लेकिन सेबी के जमीन के कमर्शियल यूज पर सवाल खड़ा करते हुए इसके वास्तविक मूल्य को काफी कम आंका था। इसके बाद सहारा समूह ने इस जमीन को बेचने की योजना छोड़ दी थी।
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वहीं, सहारा समूह की तरफ से अभी तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है। बीएमसी की डेवलपमेंट योजना के सलाहकार वी. के. पाठक का इस संबंध में कहना है, 'अगर इस जमीन को मेट्रो या मोनो रेल यार्ड के निर्माण के लिए चिन्हित किया गया है तो इसके वाणिज्यिक इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाएगी।'
उनके मुताबिक इस प्लॉट को इसलिए डेवलपमेंट योजना में शामिल किया गया है कि अब यह समुद्र के हाईटाइड क्षेत्र में नहीं आता। वहीं, इस योजना के विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। ओशिवारा लोखंडवाला सिटिजन एसोसिएशन ने अपने सेबी को शिकायत की है कि इस योजना से बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति होगी तथा मैंग्रोव नष्ट हो जाएगें तथा समुद्री ज्वार क्षेत्र का अतिक्रमण होगा।
पर्यावरणवादी और आर्किटेक्ट पीके दास का कहना है कि इस जमीन के गैर कानूनी ढंग से भरा जा रहा है। एक समय यह इलाका मैंग्रोव के पौधों से भरा जो पर्यावरण के लिए बेहद जरुरी है। लेकिन शहर में जमीन की कमी को देखते हुए प्राधिकरण ने इसे डेवलपरों के हवाले कर दिया।