500 Million Fraud, Money Stuck
Admin | 07 December, 2015 | 894 | 3980
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ये कंपनियां हुई फ्राॅड
चिटफंड कंपनियां जिले के कोने-कोने में एजेंट फैलाकर लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई समेटकर फरार हो गई। एक दर्जन कंपनियों ने करीब 500 करोड़ की ठगी जिले में की। कुछ कंपनियों के डायरेक्टर गिरफ्तार होकर जेल में बंद हैं। लेकिन जिन लोगों के पैसे गए, उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। आगे रकम वापसी होगी ऐसा मुश्किल है।
जिले में पिछले पांच साल के दाैरान एक दर्जन से ज्यादा चिटफंड कंपनियों ने दफ्तर खोलकर एजेंट बनाओं, करोड़ों समेटो और भाग जाओ के तर्ज पर कारोबार किया। कंपनियों के स्कीम के झांसे में आकर हजारों की संख्या में लोगों ने रकम लगाया। ऊर्जानगरी के लोगों को तीन-चार साल में रकम दोगुना और पांच-छ: साल में तीगुना होने के साथ ही अतिरिक्त लाभांस का झांसा देकर तो किसी कंपनी ने जमीन पर रकम लगाकर कई गुना अधिक कमाने का लालच देकर लोगों से निवेश कराया। एक आंकलन के मुताबिक जिले से करीब 500 करोड़ रुपए चिटफंड कंपनियों में जमा हुए हैं। ग्रीन-रे इंटरनेशनल, सांई प्रकाश, रोजवेली, रेनाट्स समेत अन्य कई कंपनियां लोगों की जमा पूंजी समेटकर भागी। वहीं सांई प्रसाद समेत कई कंपनियों ने निवेशकों का भुगतान रोक दिया था। लंबे समय से कंपनी भुगतान के बजाए निवेशकों को घुमा रही थी। जिला पुलिस ने ऐसी फ्रॉड चिटफंड कंपनियों के लिए लगातार कार्रवाई शुरू की। जिसके बाद एक साल के भीतर आधा दर्जन से ज्यादा कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ। डायरेक्टरों के अलावा अन्य जिम्मेदार लोगों को आरोपी बनाया गया।
स्थानीय स्तर पर एजेंट और पदाधिकारी गिरफ्तार हुए। वहीं प्रदेश के अन्य जिलों में सांई प्रसाद, ग्रीन-रे, विनायक होम्स और रेनाट्स कंपनी के डायरेक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया। सभी कंपनियों के गिरफ्तार डायरेक्टर अभी जेल में निरूद्ध हैं। न्यायालय के अलावा प्रशासन भी ऐसी चिटफंड कंपनियों के खिलाफ शिकंजा कस रही है। लेकिन चिटफंड कंपनियों के ठगी का शिकार हुए लोगों को डूबी रकम की वापसी सुनिश्चित नहीं हो सकी है। निवेशकों को पूर्ण रकम की वापसी हो जाए ऐसा मुश्किल ही लग रहा है।
लाइसेंस का छलावा
कई साल कारोबार
दफ्तर सील
डॉल्फिन इंफ्रा पॉवर लिमिटेड
ग्रीन-रे इंटरनेशनल
रोजवेली कंपनी
सांई प्रसाद कंपनी (फ्यूचरेडी)
जेएसबी इंफ्रा कंपनी
बिरला सन लाइट कंपनी
रेनाट्स कंपनी
विनायक होम्स
पुलिस जुटा रही है संपत्ति की सही जानकारी
चिटफंड कंपनियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई के बाद जिला पुलिस द्वारा अब ऐसी कंपनियों की संपत्ति की जानकारी जुटाई जा रही है। शहरी क्षेत्र में नगर निगम से इसकी जानकारी मांगी गई है। वहीं आऊटर व ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तहसीलदारों को पत्र लिखा गया है। प्रशासन द्वारा भी चिटफंड कंपनियों की जांच के लिए एक टीम गठित किया गया है।
कानूनी प्रावधान से होगा निराकरण
पुलिस द्वारा चिटफंड कंपनियों के खिलाफ ठगी की शिकायत मिलने पर गंभीरता के साथ कार्रवाई की जा रही है। निवेशकों से बयान और साक्ष्य लेकर प्रकरण न्यायालय में पेश किया जा रहा है। जहां कानूनी प्रावधान के तहत मामले और निवेशकों के रकम के संबंध में निराकरण होगा।'' - अमरेश मिश्रा, एसपी कोरबा
इस तरह लोगों को फंसा लिया इन कंपनियों ने
फर्म या सोसायटी से दूसरे काम के लिए कंपनी और फर्म का रजिस्ट्रेशन कराया गया। उसके कागजात दिखाकर लाइसेंस होने का छलावा लोगों को दिया गया। कंपनियों के पूरे कागजात अंग्रेजी में हाेने की वजह से सामान्य लोग उसे बारिकी से नहीं पढ़ सकते थे। इसी का फायदा उठाकर लोगों को झांसे में लिया गया। नियमानुसार बैंक से ज्यादा कोई भी ब्याज नहीं देता है। जबकि चिटफंड कंपनियों ने निवेशकों को कम समय में दोगुना-तीगुना रकम या ज्यादा ब्याज समेत लाभांश देने का सब्जबाग दिखाया।
रोजवैली के एजेंट पहुंचे हाईकोर्ट
कोलकाता की चिटफंड कंपनी रोजवैली हॉटल एंड फायनेंस कंपनी ने जिले में कई साल तक कारोबार किया। मोटी रकम समेटकर कंपनी भाग गई। कंपनी के खिलाफ एफआईआर के बाद अब कंपनी के एजेंट अपने बचाव की तैयारी में जुट गए हैं। इसके लिए उन्होंने एकजुट होकर हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। जिसमें कोरबा जिले से लगभग 15 सौ निवेशकों की 10 करोड़ रुपए कंपनी में लगे होने की जानकारी देते हुए निवेशकों को रकम वापस दिलाने की गुहार लगाई है।
प्रशासनिक लापरवाही भी हुई है इस मामले में
जिले में चिटफंड कंपनियों के रकम समेटकर भागने के मामले सामने आने के बाद करीब डेढ़ साल पहले जून 2014 में जिला प्रशासन ने यहां चल रहे चिटफंड कंपनियों समेत रकम लेनदेन करने वाले 12 कंपनियों के दफ्तर सील करके जांच में लिया था। बाद में इन कंपनियों को सशर्त दफ्तर खोलने की अनुमति दी थी। लेकिन कंपनियों ने शर्तो को तोड़कर जनता से रकम निवेश कराना जारी रखा। दूसरी ओर प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई। इन कंपनियों में सांई प्रसाद, राेजवेली, विनायक होम्स भी शामिल थे।
क्या है नियम
चिटफंड कंपनी को आरबीआई से लाइसेंस जारी होता है। सेबी द्वारा एनबीएफसी के नाम से चिटफंड कंपनी को लाइसेंस दिया जाता है। इंश्योरेंस कंपनी के लिए आईआरडीए का लाइसेंस जारी किया जाता है। रियल स्टेट कारोबार के लिए भारत सरकार द्वारा एनएसबी लाइसेंस दिया जाता है। नॉन बैंकिंग काम के लिए सीआईएफएस का लाइसेंस जारी होता है। रजिस्ट्रार एवं फर्म सोसायटी से भी ऐसी कंपनियों के लिए लाइसेंस जारी होता है। कंपनी एक्ट के तहत लाइसेंस जारी होता है। लाइसेंसी कंपनी एक्ट के अनुसार कार्य करती है।
रूचि रियल स्टेट कंपनी
चिटफंड कंपनियां जिले के कोने-कोने में एजेंट फैलाकर लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई समेटकर फरार हो गई। एक दर्जन कंपनियों ने करीब 500 करोड़ की ठगी जिले में की। कुछ कंपनियों के डायरेक्टर गिरफ्तार होकर जेल में बंद हैं। लेकिन जिन लोगों के पैसे गए, उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। आगे रकम वापसी होगी ऐसा मुश्किल है।
जिले में पिछले पांच साल के दाैरान एक दर्जन से ज्यादा चिटफंड कंपनियों ने दफ्तर खोलकर एजेंट बनाओं, करोड़ों समेटो और भाग जाओ के तर्ज पर कारोबार किया। कंपनियों के स्कीम के झांसे में आकर हजारों की संख्या में लोगों ने रकम लगाया। ऊर्जानगरी के लोगों को तीन-चार साल में रकम दोगुना और पांच-छ: साल में तीगुना होने के साथ ही अतिरिक्त लाभांस का झांसा देकर तो किसी कंपनी ने जमीन पर रकम लगाकर कई गुना अधिक कमाने का लालच देकर लोगों से निवेश कराया। एक आंकलन के मुताबिक जिले से करीब 500 करोड़ रुपए चिटफंड कंपनियों में जमा हुए हैं। ग्रीन-रे इंटरनेशनल, सांई प्रकाश, रोजवेली, रेनाट्स समेत अन्य कई कंपनियां लोगों की जमा पूंजी समेटकर भागी। वहीं सांई प्रसाद समेत कई कंपनियों ने निवेशकों का भुगतान रोक दिया था। लंबे समय से कंपनी भुगतान के बजाए निवेशकों को घुमा रही थी। जिला पुलिस ने ऐसी फ्रॉड चिटफंड कंपनियों के लिए लगातार कार्रवाई शुरू की। जिसके बाद एक साल के भीतर आधा दर्जन से ज्यादा कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ। डायरेक्टरों के अलावा अन्य जिम्मेदार लोगों को आरोपी बनाया गया।
स्थानीय स्तर पर एजेंट और पदाधिकारी गिरफ्तार हुए। वहीं प्रदेश के अन्य जिलों में सांई प्रसाद, ग्रीन-रे, विनायक होम्स और रेनाट्स कंपनी के डायरेक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया। सभी कंपनियों के गिरफ्तार डायरेक्टर अभी जेल में निरूद्ध हैं। न्यायालय के अलावा प्रशासन भी ऐसी चिटफंड कंपनियों के खिलाफ शिकंजा कस रही है। लेकिन चिटफंड कंपनियों के ठगी का शिकार हुए लोगों को डूबी रकम की वापसी सुनिश्चित नहीं हो सकी है। निवेशकों को पूर्ण रकम की वापसी हो जाए ऐसा मुश्किल ही लग रहा है।
लाइसेंस का छलावा
कई साल कारोबार
दफ्तर सील
डॉल्फिन इंफ्रा पॉवर लिमिटेड
ग्रीन-रे इंटरनेशनल
रोजवेली कंपनी
सांई प्रसाद कंपनी (फ्यूचरेडी)
जेएसबी इंफ्रा कंपनी
बिरला सन लाइट कंपनी
रेनाट्स कंपनी
विनायक होम्स
पुलिस जुटा रही है संपत्ति की सही जानकारी
चिटफंड कंपनियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई के बाद जिला पुलिस द्वारा अब ऐसी कंपनियों की संपत्ति की जानकारी जुटाई जा रही है। शहरी क्षेत्र में नगर निगम से इसकी जानकारी मांगी गई है। वहीं आऊटर व ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तहसीलदारों को पत्र लिखा गया है। प्रशासन द्वारा भी चिटफंड कंपनियों की जांच के लिए एक टीम गठित किया गया है।
कानूनी प्रावधान से होगा निराकरण
पुलिस द्वारा चिटफंड कंपनियों के खिलाफ ठगी की शिकायत मिलने पर गंभीरता के साथ कार्रवाई की जा रही है। निवेशकों से बयान और साक्ष्य लेकर प्रकरण न्यायालय में पेश किया जा रहा है। जहां कानूनी प्रावधान के तहत मामले और निवेशकों के रकम के संबंध में निराकरण होगा।'' - अमरेश मिश्रा, एसपी कोरबा
इस तरह लोगों को फंसा लिया इन कंपनियों ने
फर्म या सोसायटी से दूसरे काम के लिए कंपनी और फर्म का रजिस्ट्रेशन कराया गया। उसके कागजात दिखाकर लाइसेंस होने का छलावा लोगों को दिया गया। कंपनियों के पूरे कागजात अंग्रेजी में हाेने की वजह से सामान्य लोग उसे बारिकी से नहीं पढ़ सकते थे। इसी का फायदा उठाकर लोगों को झांसे में लिया गया। नियमानुसार बैंक से ज्यादा कोई भी ब्याज नहीं देता है। जबकि चिटफंड कंपनियों ने निवेशकों को कम समय में दोगुना-तीगुना रकम या ज्यादा ब्याज समेत लाभांश देने का सब्जबाग दिखाया।
रोजवैली के एजेंट पहुंचे हाईकोर्ट
कोलकाता की चिटफंड कंपनी रोजवैली हॉटल एंड फायनेंस कंपनी ने जिले में कई साल तक कारोबार किया। मोटी रकम समेटकर कंपनी भाग गई। कंपनी के खिलाफ एफआईआर के बाद अब कंपनी के एजेंट अपने बचाव की तैयारी में जुट गए हैं। इसके लिए उन्होंने एकजुट होकर हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। जिसमें कोरबा जिले से लगभग 15 सौ निवेशकों की 10 करोड़ रुपए कंपनी में लगे होने की जानकारी देते हुए निवेशकों को रकम वापस दिलाने की गुहार लगाई है।
प्रशासनिक लापरवाही भी हुई है इस मामले में
जिले में चिटफंड कंपनियों के रकम समेटकर भागने के मामले सामने आने के बाद करीब डेढ़ साल पहले जून 2014 में जिला प्रशासन ने यहां चल रहे चिटफंड कंपनियों समेत रकम लेनदेन करने वाले 12 कंपनियों के दफ्तर सील करके जांच में लिया था। बाद में इन कंपनियों को सशर्त दफ्तर खोलने की अनुमति दी थी। लेकिन कंपनियों ने शर्तो को तोड़कर जनता से रकम निवेश कराना जारी रखा। दूसरी ओर प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई। इन कंपनियों में सांई प्रसाद, राेजवेली, विनायक होम्स भी शामिल थे।
क्या है नियम
चिटफंड कंपनी को आरबीआई से लाइसेंस जारी होता है। सेबी द्वारा एनबीएफसी के नाम से चिटफंड कंपनी को लाइसेंस दिया जाता है। इंश्योरेंस कंपनी के लिए आईआरडीए का लाइसेंस जारी किया जाता है। रियल स्टेट कारोबार के लिए भारत सरकार द्वारा एनएसबी लाइसेंस दिया जाता है। नॉन बैंकिंग काम के लिए सीआईएफएस का लाइसेंस जारी होता है। रजिस्ट्रार एवं फर्म सोसायटी से भी ऐसी कंपनियों के लिए लाइसेंस जारी होता है। कंपनी एक्ट के तहत लाइसेंस जारी होता है। लाइसेंसी कंपनी एक्ट के अनुसार कार्य करती है।
रूचि रियल स्टेट कंपनी