लखनऊ. सहारा प्रमुख सुब्रत राॅय जैसा व्यक्ति जो कि इतनी बड़ी दौलत का मालिक है वह आखिर क्यों दो सालों तक तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे अपने दिन काटता रहा, जब इतनी संपत्ति है तो सभी बकायों को क्यों नहीं निपटा लिया गया।
ये सावाल सुप्रीम कोर्ट के जेहन में उस समय कौंधे जब वह सहारा प्रमुख की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों की समीक्षा कर रहा था। सुब्रत राॅय ने उनकी अंतरिम जमानत को छह महीने तक बढ़ाने की अपील की थी। सहारा श्री इस समय अपनी मां के अंतिम संस्कारों के लिए पैरोल पर जेल से बाहर हैं।
कोर्ट के सामने राॅय के वकील कपिल सिब्बल ने उनकी संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों को रखते हुए कोर्ट को आश्वस्त किया कि सहारा प्रमुख देश छोड़कर नहीं जाएंगे। उल्लेखनीय है कि सुब्रत राॅय पर 36000 करोड़ रुपयों की देनदारी है, जिसमें से वह 12000 करोड़ का भुगतान कर चुके हैं। हांलांकि उनकी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया।
हर तरह हो रही है चर्चा
सुप्रमी कोर्ट की टिप्पणी के बाद यूपी की राजधानी में यह चर्चा हो रही थी कि जिसके पास इतना बेशुमार दौलत है। वह व्यक्ति इतने दिनों से जेल की सलाखों के पीछे क्यों है। हार्इकोर्ट के वकील सत्येंद्र मिश्र कहते हैं कि सहरा के पास बेशुमार दौलत तो है वहीं उनकी देनदारी भी है। वह जेल में क्यों बंद हैं, इसके बारे में तो कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो तय है कि वे जब चाहें जुर्माना अदा कर जेल से बाहर आ सकते हैं।
वहीं हजरतगंज में एक चाय की दुकान पर कुछ लोग इस बात की चर्चा कर रहे थे कि इतना पैसा वाला आदमी आखिर जेल में क्यों बंद है। चर्चा के दौरान अरविंद तिवारी ने कहा कि ये बड़े लोग हैं, ये जब चाहें जेल से बाहर आ सकते हैं, हो सकता है कि सहारा श्री अपनी किसी खास रणनीति के तहत जेल में बंद रहना चाहते हों।
आलीशान हवेली जैसे मकान में रहने वाले, सुरक्षा में तैनात कर्इ सुरक्षा गार्ड आैर शानो शौकत से जिंदगी जिने वाले सुब्रत राय सहारा एक एेसा नाम है जिसे सहारा समूह का हर व्यक्ति सम्मान के साथ केवल सहाराश्री की कहता है। वे देश के फेमस उद्याोगपतियों में शामिल हैं। सुब्रत राय सहारा ने लाखों लोगों को रोजगार दिया है। वे करीब 120 कंपनियों और 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की मिल्कियत वाले सहारा ग्रुप के मालिक हैं। देश के इस मशहूर उद्योगपति की कैद ने उनके सहारा इंडिया परिवार को मौजूदा हालात में बेसहारा सा बना दिया है। अभी सुब्रत राय सहारा पैरोल पर जेल से बाहर हैं। अपनी मां छवि रॉय के निधन पर तिहाड़ जेल से पैरोल पर बाहर आए सहारा समूह प्रमुख सुब्रत रॉय का पैरोल सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई तक बढ़ा दिया है।
सुब्रत रॉय को देश में कहीं भी जाने की छूट होगी। उन्हें दिल्ली पुलिस कमिश्नर को बताकर बाहर जाना होगा। अब सुब्रत रॉय 11 जुलाई तक जेल से बाहर रह पायेंगे। उनकी निगरानी में पुलिसकर्मी रहेंगे साथ ही सुब्रत रॉय को 11 जुलाई तक 200 करोड़ रुपये भी जमा करने होंगे।
दो साल पहले बंद हुए थे
सुब्रत रॉय सहारा सहारा दो साल बाद जेल से बाहर आए थे सुब्रत राय को उनकी मां के अंतिम संस्कार के लिए 4 हफ्तों का पैरोल मिला था। सुब्रत रॉय की मां छवि रॉय की पांच मई की देर रात मृत्यु हो गई थी। सहारा ने मां के अंतिम संस्कार और बाकी धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए 3 हफ्तों के पैरोल के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी।
किले जैसा दिखता है सहारा हाउस
सुब्रत राय सहारा का सहारा हाउस किले जैसा दिखता है, उनका यह आशियाना देखने में जितना आलीशान दिखता है उतने ही बुलंद आैर मजबूत उसके दरवाजे भी हैं। लेकिन कानून के मजबूत हाथों ने जब इस बुलंद दरवाजे पर अपनी दस्तक दी थी तो पूरे सहारा साम्राज्य में खलबली मच गई थी। यूपी की राजधानी लखनऊ में सहारा सिटी का ये इलाका सुब्रत राय का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। एक समय था जब सहारा स्टेट में बड़े.बड़े नेता से लेकर खिलाड़ी और फिल्मी सितारे तक अपनी चमक बिखेर कर सहारा श्री के शानो शौकत आैर उनके दबदबे का अहसास कराते थे, लेकिन बदले हालात ने सुब्रत रॉय को तिहाड़ जेल की मजबूत दीवारों के पीछे ढकेल दिया है।
दो हजार से करोड़ों के आर्थिक साम्राज्य का सफर
एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की मिल्कियत वाले सहारा समूह के मालिक सुब्रत राय के आलीशान ठाठ.बाट की कहानियां हमेशा सामने आती रही हैं। वे अपने कामों को लेकर भी हमेशा सुर्खियों में रहते रहे हैं। 2 हजार रुपये से हजारों करोड़ रुपये के आर्थिक साम्राज्य का सफर तय करने वाले सुब्रत रॉय की कहानी कामयाबी की कहानी होती अगर सेबी के साथ सहारा समूह अपने सबसे बड़े झगड़े में उलझे न होते।
गोरखपुर से हुर्इ थी शुरुआत
वैसे तो सहारा ग्रुप की शुरुआत यूपी के गोरखपुर में हुई थी, लेकिन इस ग्रुप के फाउंडर सुब्रत रॉय का जन्म 1948 में बिहार के अररिया जिले में हुआ था। सुब्रत रॉय ने स्कूली शिक्षा कोलकाता के होली चाइल्ड स्कूल से की, उसके बाद वे डिप्लोमा की पढ़ार्इ किए। गोरखपुर के राजकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज से सुब्रत राय ने डिप्लोमा की पढ़ाई की है।
लेम्ब्रेटा स्कूटर से शुरू हुआ था सफर
गोरखपुर शहर के तुर्कमानपुर इलाके के लोगों को आज भी सुब्रत रॉय की वो लेम्ब्रेटा स्कूटर याद आती है, जिस पर बैठ कर उन्होंने अपने बिजनेस की शुरुआत की थी। गोरखपुर के देवेंद्र पांडेय का कहना है कि मैं उनके साथ पढ़ा हूं, उस समय उनके पास एक लेम्ब्रेटा स्कूटर हुआ करता था। आज वे कहां से कहां पहुंच गए हैं, यह साधारण आदमी के बस की बात नहीं है। वे हर समय बिजनेस के बारे में ही सोचते रहते थे। आज उन्होंने लाखों लोगों को रोजगार दिया, लेकिन उनकी गलतियों ने आज उन्हें अर्श से फर्श पर ला दिया है।
सपने बेचने में माहिर
जब उन्होंने बिजनेस की शुरुआत की तो छोटी कमाई वालों को बड़े.बड़े सपने दिखाए थे और यही छोटी.छोटी कमाई उनके पास जमा होती गई और वह कामयाबी के साथ सपने बेचते चले गये। 2 हजार रुपये से शुरू हुई सहारा चिटफंड कंपनी लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के सहारा ग्रुप में तबदील हो गयी। सहारा श्री के सपने बड़े थे उनकी सहारा चिटफंड कंपनी की उड़ान के लिए यह शहर छोटा लगने लगा था, इसलिए सुब्रत रॉय ने अस्सी के दशक के आखिर में इस शहर को टाटा कर दिया। 1990 में सहारा चिटफंड का कमांड ऑफिस लखनऊ शिफ्ट कर दिया गया। पैसा आया तो इसे कंपनी के प्रचार-प्रसार में झोंक दिया गया। मुख्य शहरों में सहारा की विशाल इमारतें बनवाईं गयीं। क्रिकेट से लेकर फिल्मी सितारों और राजनेताओं को रिझाने के लिए भव्य आयोजन करवाए गये।
सरहदों के पार पहुंचा कामयाबी का कारवां
सहारा ग्रुप अब दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। मुंबई में सहारा की एंम्बे वैली हो या लखनऊ का सहारा एस्टेट, सुब्रत रॉय की सितारों से जगमगाती ये महफिलें खासी मशहूर रहीं हैं। लंदन में ग्रॉस वेन्सर्स होटल हो या न्यूयार्क में लैंडमार्क प्लाजा होटल सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय की कामयाबी का ये कारवां देश की सरहदों के पार भी जा पहुंचा।
रातों.रात बन गया था 'सहारा इंडिया'
सुब्रत रॉय ने उस समय इस खतरे को खत्म करने के लिए एक दूसरा खतरा और मोल ले लिया था। उन्होनें सहारा चिटफंड कंपनी से जुड़े मुंबई के लोगों पर इस बात के लिए दबाव डाला कि गोरखपुर में लोगों से जमा किए गए पैसे का निवेश मुंबई की बजाए गोरखपुर में ही किया जाना चाहिए। सुब्रत राय के एक दोस्त का कहना है कि काफी ना.नुकर के बाद मुंबई के लोग तैयार हो गये। फिर रातोंरात यहां एग्रीमेंट बना। शाम को इलाही बाग से स्टाम्प खरीदकर लाये और एग्रीमेंट बना। रात को दस्तखत हुआ और सुबह वापस कर दिया गया और वहीं अगले दिन सहारा इंडिया बना।
बेचा साबुन, दालमोठ
गोरखपुर की सड़कों पर भटकते हुए सुब्रत रॉय ने जिंदगी में संघर्ष का अपना पहला सबक सीखा था। सुब्रत रॉय ने अपने करियर की शुरुआत रोजमर्रा के छोटे-मोटे सामान बेचने से की थी। गोरखपुर की मेयर रही अंजू चौधऱी बताती हैं कि शुरुआत में सुब्रत रॉय अपने लेम्ब्रेटा स्कूटर पर साबुन और दालमोठ जैसी छोटी-छोटी चीजें रख कर बेचा करते थे, लेकिन उनकी जिंदगी में उस वक्त टर्निंग प्वाइंट आया जब उन्होंने 1978 में गोरखपुर में अपनी चिट फंड कंपनी की शुरुआत की थी और उस चिट फंड कंपनी का नाम था सहारा। वह छोटे-छोटे दुकानदारों के पास, यहां तक कि पान वाले के पास से भी, छोटे डिपॉजिट जैसे 15-30 रुपए तक लेते एक कमरे के आफिस में मंथली ड्रॉ निकाला करते थे।
2011.12 में संपत्ति 14286 करोड़ रुपये बढ़ी
सहारा ग्रुप का न्यूयार्क में प्लाज़ा होटल
बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार के मुताबिक अप्रैल 2011 से सितम्बर 2012 के महीनों में सहारा इंडिया परिवार की संपत्ति 14286 करोड़ रुपये बढ़ गयी। ये वह दौर था जब सहारा इंडिया परिवार सेबी के साथ 24000 करोड़ के झगड़े में उलझा हुआ था। इन 17 महीनों में सहारा ग्रुप ने 60,091 करोड़ रुपये निवेशकों से इकट्ठा किए जबकि निवेशकों को लौटाए 45805 हजार करोड़ रुपये।
वक्त से कोर्इ नहीं जीत सकता
कहते हैं वक्त से कोई नहीं जीत सकता। समय की सत्ता तो अजेय है। इंसान छोटा हो या बड़ा, रईस हो या फकीर, वक्त के बदलते मिजाज के साथ ही महलों में शानों शौकत से जिंदगी गुजारने वालों को भी काल कोठरी नसीब हो जाती है। सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत रॉय की किस्मत भी कुछ एेसी ही रही। सहारा समूह को अपने निवेशकों को 36 हजार करोड़ रुपये की राशि लौटानी है। इस मामले में सुब्रत रॉय पिछले करीब 2 साल से जेल में थे वह पिछले दिनों अपनी मां के निधन के बाद पैरोल पर छूटे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 हजार करोड़ रुपये जमा करके जमानत लेने की शर्त रखी थी, लेकिन सुब्रत रॉय अब तक इस पैसे का भी इंतजाम नहीं कर सके हैं। अब कोर्ट ने कहा है कि सहारा की 86 प्रॉपर्टिज को बेचकर सुब्रत रॉय की रिहाई के लिए जरूरी रकम इकट्ठा कर ली जाये।