नई दिल्ली। शारदा चिटफंड कांड जैसे मामलों की मार से आम लोगों को बचाने के लिए एक संसदीय समिति चिटफंड योजनाओं के नियमन के लिए उपाय सुझाने की तैयारी कर रही है। समिति सरकार, रिजर्व बैंक और सेबी सहित विभिन्न पक्षों के साथ विचार विमर्श के बाद संसद के शीतकालीन सत्र में अपनी सिफारिशें पेश कर सकती है।
सूत्रों के मुताबिक वित्त मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति चिट फंड तथा इसी तरह की अन्य निवेश योजनाओं के नियमन की मौजूदा व्यवस्था पर विचार कर रही है। समिति अब तक रिजर्व बैंक और सेबी के इस संबंध में विचार जान चुकी है। कांग्रेस के वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली यह समिति बुधवार को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (आइआइसीए) के विचार जानेगी।
पोंजी स्कीमों का नियमन कितना जरूरी है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि बहुचर्चित रोज वैली और शारदा चिटफंड घोटालों में आम निवेशकों को क्रमशः 15000 करोड़ रुपये और 2500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इन घोटालों में पश्चिम बंगाल तथा पड़ोसी राज्यों में लाखों लोगों के साथ धोखाधड़ी की गई है। कंपनी कार्य मंत्रालय ने बीते तीन साल में 100 से अधिक चिटफंड कंपनियों की जांच भी की है।
इस बीच वित्त मंत्रालय भी पोंजी स्कीम की जांच करने वाली संस्थाओं के लिए एक मानक जांच प्रक्रिया (एसओपी) तैयार कर रही है। केंद्रीय आर्थिक खुफिया ब्यूरो (सीईआइबी) इस एसओपी को प्रवर्तन निदेशालय सहित दूसरी जांच एजेंसियों के साथ साझा करेगा।
चिटफंड संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। लिहाजा आम तौर पर राज्य सरकारें इनके नियमन के लिए कानून बनाती हैं। केंद्र ने भी इनके नियमन के लिए चिटफंड कानून 1982 बनाया है। इस कानून को अलग-अलग तारीखों से विभिन्न राज्यों में लागू किया गया है। केंद्र का कानून लागू होने के बाद राज्य का कानून प्रभावी नहीं रहेगा। साथ ही केंद्र निवेश की छोटी योजनाओं में धोखाधड़ी रोकने के लिए प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम बैनिंग एक्ट 1978 में भी बदलाव करने जा रही है।
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