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The drone on the reins

The drone on the reins

जयपुर: भारत की गिनती दुनिया के उन देशो में होती है जहां निवेशकों के हितों के प्रति विशेष गंभीरता नजर नहीं आती। यहां कभी कुबेर घोटाला होता है तो कभी सारधा तो कभी सहारा।



दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना देखने वाले देश के लिए यह कोई शुभ लक्षण नहीं है। एक बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए क्यों जरूरी है निवेशक के हितों को प्राथमिकता देना और इसके लिए क्या कदम उठाने चाहिए, इसी पर पढि़ए आज के स्पॉटलाइट में जानकारों की राय...



नियमन में स्पष्टता  है पहली जरूरत



सुयश राय, वरिष्ठ सलाहकार, एनआईपीएफपी निवेश के माध्यम से आय की चाह हर आदमी में होती है। यह निवेश कई प्रकार के हो सकते हैं। बैंक में जमा, गैर बैंकिंग कपंनियों में फिक्सड डिपोजिट, सामूहिक निवेश योजनाएं, म्यूचुअल फंड तथा चिट फंड। बैंक में जमा और एनबीएफसी के फिक्सड डिपोजिट को जहां रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नियमित करता है, सामूहिक निवेश योजनाओं, म्यूचुअल फंड को सेबी नियमित करता है तथा चिट फंड को कंपनी लॉ बोर्ड के रजिस्ट्रार के माध्यम से राज्य नियमित करते हैं। पर मुश्किल यह है कि इन सब में बहुत बारीक अंतर होता है।



यह अंतर इतना महीन होता है कि आम आदमी तो भ्रमित होता ही है, खुद नियामक संस्थाएं यह कह सकती हैं कि ये कंपनी हमारे दायरे में ही नहीं आती यह तो दूसरी नियामक संस्था का मामला है। इस भ्रम और अव्यवस्था की वजह से कई ऐसी निवेश गतिविधियों को पनपने का मौका मिल जाता है जो कि किसी भी नियामक संस्था के साथ पंजीकृत नहीं हैं और पूरी तरह से अवैध निवेश गतिविधियों में लिप्त हैं।



उपभोक्ता की हैं सीमाएं



ऐसा नहीं है कि कोई एक निवेश बेहतर है और कोई दूसरा निवेश बेहतर नहीं है। हर निवेश उपकरण एक विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता को संबोधित होता है। कौन सा निवेश बेहतर है और कौन सा नहीं यह तो वह उपभोक्ता विशेष ही तय कर सकता है। निवेशक के लिए यह पता करना असंभव जैसा है कि वह जिस  निवेश उपकरण के माध्यम से निवेश कर रहा है वह सुरक्षित है।



यह तो रेगुलेटर अर्थात नियामक संस्थाओं का काम है कि वह सारधा जैसी पोंजी स्कीम योजनाओं या फ्रॉड निवेश कंपनियो को नहीं पनपने दें। उदाहरण के लिए चिटफंड योजनओं को प्राय: फ्राड समझा जाता है पर हकीकत में यह योजनाएं केरल और तमिलनाडु में बहुत सफलता से चल रही हैं। इनका नियमन करने के लिए बाकायदा एक केंद्रीय कानून के साथ राज्यों के कानून हैं।



लगभग पांच साल पहले किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल की चिटफंड कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं। ऐसा संभव हो पाया क्योंकि इन राज्यों में चिटफंड कंपनियों का नियमन बेहतरीन है। अगर कोई चिटफंड कंपनी कानून में रहकर काम करे तो उसे अपने पैसे को सिर्फ चार स्थानों में खर्च करने की अनुमति होती है।



पहला, चिटफंड को चलाने के लिए। दूसरा, चिटफंड कंपनी के सदस्य को उधारी देने के लिए। तीसरा, स्वीकृत बॉंंड तथा अन्य निवेश उपकरणों में। चौथा, बैंक में जमा करना। अन्य किसी काम में चिटफंड कंपनियां अपना पैसा खर्च कानूनी रूप से नहीं कर सकतीं। इसलिए अगर चिटफंड कंपनियां भी ठीक से रेगुलेट हों तो उनके संचालन में कहीं कोई समस्या नहीं है।



सारी समस्या रेगुलेशन के स्तर पर है। बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यों में इनको रेगुलेशन ठीक से नहीं होनेे के कारण ही सारी समस्या खड़ी हुई है। सारधा तो चिटफंड स्कीम भी नहीं थी। इसका तो सारा निवेश का धंधा अवैध था। यह तो कंपनी के रूप में पंजीकृत थी।



तीन कदम जरूरी इस तरह के घोटालों से भविष्य में बचने के लिए दो तीन कदम उठाए जा सकते हैं। पहली जरूरत है कि रेगुलेशन बहुत साफ होना चाहिए कि कौन सी आर्थिक गतिविधि किसके दायरे में आती है। इस दिशा में वित्त मंत्रालय कुछ कदम उठा भी रहा है, जैसे एक इंडियन फाइनेंशियल कोड का मसौदा बनाया गया है।



इसके अंतर्गत यह प्रावधान है कि आरबीआई वे सिर्फ वे मामले देखेगा जो कि बैंकिंग और भुगतान से जुड़े हों तथा बाकी सारी निवेश और वित्तीय गतिविधियों की निगरानी एक नया वित्तीय प्राधिकरण करेगा। दूसरा यह कि नियमन और निगरानी संस्था आधारित न होकर गतिविधि आधारित होना चाहिए। अभी यह होता है कि जब कोई घोटाला हो जाता है, किसी के साथ धोखा हो जाता है तो वह संबंधित संस्था को रेगुलेट करनी वाली नियामक अथॉरिटी में शिकायत करने जाता है, तब कार्रवाई शुरू होती है।



होना यह चाहिए कि नियामक अथॉरिटी को संस्थाओं का नियमन करने की बजाय गतिविधियों को रेगुलेट करना चाहिए। जिस तरह से पुलिस पैट्रोलिंग करती है, अपराध को रोकने का प्रयास करती है, कार्यालय में बैठकर अपराध होने का इंतजार नहीं करती रहती, उसी तरह वित्तीय और निवेश गतिविधियों की भी सतत निगरानी होनी चाहिए और उनमें कुछ भी अनियमितता या फर्जीवाड़ा होने की आश्ंाका पर घोटाला होने से पहले ही कार्रवाई होना चाहिए।



तीसरा यह कि जहां भी कोई व्यक्ति या संस्था हजारों की संख्या में लोगों का पैसा जमा करता हो, उसे स्वत: ही सख्त निगरानी के दायरे में आ जाना चाहिए। अगर ये उपाय किए जाएं तो उम्मीद की जा सकती है कि हम निवेशकों से धोखाधड़ी रोकने की दिशा में एक  मजबूत आधारशिला का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ पाएंगे।



बढ़ी है जागरूकता



सुनील पचीसिया, उपाध्यक्ष, प्रतिभूति विनियोग लिमिटेड सारधा जैसे घोटालों के मद्देनजर पिछले दिनों सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि  कंपनी लॉ बोर्ड के साथ पंजीकृत कंपनी को अब अपने हर दस्तावेजी आदान-प्रदान में सीआईन अर्थात कंपनी आइडेंटिफिकेशन नंबर लिखना होगा। ईमेल तथा फोन नंबर आदि भी लिखना होता है।



इससे अब हर जागरूक निवेशक के लिए यह पहचान करना आसान हो गया है कि जो कंपनी निवेश जमा कर रही है वो कितनी फर्जी या असली है। सामान्यत: जो फर्जी जमा कंपनियां होती हैं वो 'जन संपर्क और माउथ पब्लिसिटी के आधार पर चलती हैं। वे जो दस्तावेज निवेश उपकरण के रूप में निवेशक को देती हैं उनमें न तो कंपनी के निदेशक आदि और कंपनी की जमा-पूंजी का ब्योरा होता है और न ही उसके संपर्क का विवरण।



वे तो बस आपसी भरोसे और संपर्क के माध्यम से एक दूसरे को जोडऩे के रूप में चलते हैं। इनको पकडऩा इसलिए भी मुश्किल होता है कि ये प्राय: छोटे शहरों में छोटे निवेशकों को अपना निशाना बनाते हैं। हैरानी की बात यह है कि इनके नियमन के लिए कोई सुसंगत और सुव्यवस्थित ढांचा भी हमारे पास नहीं है।



भ्रामक दावों से बचें



डॉ. सलोनी गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय पिछले कुछ समय में हमारे देश में भोले-भाले निवेशकों को संदेहास्पद सामूहिक निवेश योजनाओं द्वारा ठगे जाने के कई मामले सामने आए हैं। जिनसे पौंजी/चिटफंड धोखाधड़ी योजनाओं का खतरा देश-जाहिर हुआ है।



सारधा समूह के पतन के साथ ही इस तरह के समूह निवेश (रुपया पूलिंग) घोटाले की एक ठेठ कहानी सामने आई है जिसमें लाखों भोले और असहाय निवेशक, अपने निवेश पर बहुत ही कम समय में हद से अधिक वापसी (रिटर्न) के वायदे के शिकार होकर, अपने पूरे जीवन की बचत खो बैठते हैं। ऐसा अनुमान है कि सारधा जालसाजी मामले में शामिल धोखेबाजों ने 24 प्रतिशत तक वार्षिक रिटर्न के वायदों द्वारा लगभग 17 लाख छोटे निवेशकों से 4800 करोड़ रुपये से अधिक रुपये एकत्र किए और वे गायब हो गए, जो कि भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी धोखाधडिय़ों में से एक है।



किसी भी पौंजी योजना के एक प्रमुख खेल की तरह ही इस घोटाले में भी सारधा समूह के जालसाजों ने 224 कंपनियों और 338 बैंक खातों की एक जटिल भूलभुलैया का प्रयोग करते हुए कई प्रकार की तथाकथित चिटफंड योजनाओं द्वारा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और पूर्वी भारत के कई और भागों में लाखों लोगों को उनकी मेहनत की कमाई से की गई बचत से बेदखल कर दिया।



कई नामी कंपनियां डरावनी खबर तो यह है कि सारधा जालसाजी मामला ऐसा कोई अकेला मामला नहीं है। हाल के समय में तो जैसे पौंजी मामलों की बाढ़ सी आ गई है। सुर्खियों में रही 'स्पीक इंडिया नाम की कंपनी ने कुछ वर्ष पूर्व इस वायदे से निवेशकों को ठगा कि एक ही वर्ष में उनके 11,000 रुपये बढ़कर 52,000 रुपये हो जाएंगे (जो कि 373 प्रतिशत का वार्षिक रिटर्न है)! 'स्टॉक गुरू, 'रोज वैली होटल व आतिथ्य, 'पर्ल एग्रोटेक तथा 'सहारा समूह मामले भी इसी प्रकार की संदिग्ध चिटफंड या पौंजी योजनाओं की सूची में शामिल है।



नित नए मुखौटे



भारत के पूंजी बाजार नियामक प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पिछले दो वर्षों में (मई 2013 से मई 2015) 50 से अधिक ऐसी संदिग्ध और गैर कानूनी सामूहिक निवेश योजनाओं के विरुद्ध कार्यवाही की है जिनमें 65,000 करोड़ रुपये से अधिक का सामूहिक निवेश एकत्रित था। असाधारण रिटर्न पैदा करने हेतु कुछ गूढ़ निवेश रणनीतियों की कथा को बेचने वाले कितने और धोखेबाज आज भी फल-फूल रहे हैं इसका तो अनुमान लगाना भी कठिन है।



नित नए मुखौटों के साथ आजकल ऐसी योजनाएं 'पिरामिड निवेश, वृक्षारोपण, समय शेयर होलिडे रिसॉर्ट्स तथा बहु राज्यीय सहकारी ऋण संस्थाओं की आड़ में प्रचलित हैं जिनमें भोले परंतु अक्सर लालची निवेशक आसानी से फंस जाते हैं। वित्तीय स्थिरता बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी छाया-वित्तपोषण (शेडो बैंकिंग) वाली अर्थव्यवस्था है जहां बैंकिंग प्रणाली के बाहर काफी अधिक निवेश गतिविधि है।



भारत में औपचारिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर इतनी कम है कि कई बार तो उससे मुद्रास्फीति की दर भी पूरी नहीं होगी। इसीलिए भोले निवेशक अक्सर छाया-बैंकिंग यानि पौंजी चिटफंड सरीखी संदिग्ध योजनाओं का आसानी से शिकार बन जाते हैं। हाल ही में अपंजीकृत तथा अवैध रूप से निवेश एकत्रित करने वाली  ऐसी योजनाओं (जिनमें 100 करोड़ रुपये या अधिक का सामूहिक निवेश हो) के विरुद्ध कार्यवाही करने में सेबी को सक्षम व सशक्त बनाने के लिए नई शक्तियां प्रदान की गई हैं।



खतरे की घंटी



अगर आप सावधानी और समझदारी से काम लें तो पौंजी चिटफंड धोखाधड़ी से बच सकते हैं। कुछ ऐसी बाते हैं जो आपको चौकन्ना करती हैं या आपके दिमाग में खतरे की घंटी बजाती हैं। असाधारण रूप से, कम समय में आपके पैसे को दोगुना-चौगुना करने वाले भ्रामक वायदों के लालच से बचें - यह पौंजी हो सकती है।



जालसाज लोग अक्सर कहेंगे कि 'यह निवेश जीवन में एक बार आने वाला अवसर है या दावा करेंगे कि 'यह एक जोखिम रहित व निश्चित/गारंटिड रिटर्न योजना है - ऐसे दावों से बचें, क्योंकि ऐसी कोई निवेश योजना नहीं होती। साथ ही ऐसी किसी योजना में निवेश करने से पहले सेबी में पंजीकरण जरूर जांच लें।


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  • 10 June, 2015
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