नई दिल्ली। देश के आम आदमी की खून-पसीने की कमाई को निवेश करने पर पोंजी स्कीम चलाने वाली कोई कंपनी हड़प न सके, यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार एक कारगर कानून बनाने की तैयारी कर रही है। वित्त मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति के सदस्य निशिकांत दुबे का कहना है कि सरकार का मकसद है कि पोंजी स्कीम चलाने वाली कम्पनियां निवेशकों के साथ भविष्य में धोखाधड़ी न कर सकें।
संसद के मॉनसून सत्र मेें इस मामले में नया बिल लाया जा सकता है। अभी एक से ज्यादा राज्यों में क्रेडिट को-ऑपरेटिव समितियां कमजोर कानूनों के दायरे में हैं। दरअसल, मॉनिटरिंग एजेंसी के पास संसाधनों का अभाव है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर फ्रॉड कंपनियों से फायदा पाने वाले राजनीतिज्ञ भी दबाव बनाते है। भारत के पास पोंजी स्कीम और पिरामिड स्कीम पर लगाम लगाने के लिए एकीकृत व्यवस्था नहीं है। जांच में ये पता चला है कि अब तक भारत में 6 करोड़ से ज्यादा निवेशक 67 हजार 339 करोड़ रुपये गंवा चुके हैं। हेराफेरी कर भोले-भले निवेशकों का धन हड़पने वाली निवेश कंपनियों ने ट्री प्लांटेशन से लेकर फ्लाइटलेस पक्षी ईमू की खेती के लिए निवेश का झांसा देकर आम निवेशकों से करोड़ों रूपए उगाहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि गरीब से गरीब लोगों को बैंकिग सिस्टम से जोड़ा जा सके ताकि फ्रॉड कंपनियां उनके साथ धोखाधड़ी न कर सकें।
निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के मामलों में कई चिट-फण्ड कम्पनियों के निदेशकों और मालिकों की हाल के कुछ वर्षों में गिरफ्तारियां भी हुई हैं और उन पर मुकदमे भी चल रहे हैं। इन कम्पनियों पर गैरकानूनी तरीके से निवेशकों से करोड़ों रुपये के निवेश और धोखाधड़ी करने के मामले उजागर हुए हैं।
हालाँकि सेबी के पास 100 करोड़ से ज्यादा मामलों में जांच करने और खातों को फ्रीज करने का अधिकार है। लेकिन कानून बनाने वालों का मानना है कि गरीब निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए और कड़े कानून बनाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री इसे लेकर स्वयं चिंतित हैं।