पश्चिम बंगाल में पोंजी घोटाला अनुमानों को भी मात दे रहा है। ऑल इंडिया स्मॉल डिपॉजिटर्स एसोसिएशन ने पैसे जुटाने वाली 27 कंपनियों के आंकड़े दिए हैं, जिनके अनुसार इन फर्मों ने पिछले तीन चार साल में मिलकर करीब 40,000 करोड़ रुपये जुटाए। इसमें रोज वैली द्वारा जुटाए गए 15,000 करोड़ रुपये और सारदा द्वारा जुटाए गए 2,500 करोड़ रुपये शामिल नहीं है। पैसे जुटाने के मामले में रोजवैली सबसे ऊपर है। डिपॉजिटर्स एसोसिएशन ने तकरीबन 114 कंपनियों की एक सूची बनाई है, जिसमें करीब 15 लाख एजेंट शामिल हैं। अभी तक एसोसिएशन ने 27 कंपनियों से ही आंकड़े जुटाए हैं। एसोसिएशन के संयोजक सुबीर दे के अनुसार पोंजी कंपनियों द्वारा जुटाई गई कुल रकम 1 लाख करोड़ रुपये से भी ऊपर हो सकती है।
अप्रैल, 2014 में एसोसिएशन ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी, जिसमें उन 114 कंपनियों के खिलाफ जांच की गुहार लगाई गई थी, जिन्होंने सामूहिक निवेश योजनाओं के जरिये रकम जुटाई थी। उच्चतम न्यायालय ने याचियों को निर्देश दिया कि वे जांच में जरूरी हस्तक्षेप के लिए उचित एजेंसी के पास जाएं। नतीजतन, एसोसिएशन ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ), भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), कंपनी पंजीयक (आरओसी), कंपनी मामलों के मंत्रालय और पश्चिम बंगाल सरकार को इन कंपनियों के खिलाफ जांच के लिए लिखा।
दे ने बताया, 'उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद केवल सेबी ने ही कुछ कदम उठाए। उसने करीब 32 कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की। चूंकि हमें सेबी के अलावा किसी अन्य एजेंसी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। ऐसे में हम फिर उच्चतम न्यायालय गए और अब इस मामले की अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी।' अधिकांश मामलों में धन रियल एस्टेट और आतिथ्य सत्कार परियोजनाओं के लिए अग्रिम के तौर पर जुटाया गया, जिसमें ऊंचे मुनाफे का वादा किया गया। पोंजी योजनाएं चलाने वाली तीन बड़ी कंपनियों रोज वैली, एमपीएस और आईकोर के प्रमुख पहले से ही जांच एजेंसियों की हिरासत में हैं। दे के अनुसार करीब 19 राज्यों में 45 लाख एजेंटों के जरिये चलने वाली इन पोंजी योजनाओं से करीब 8 करोड़ जमाकर्ता जुड़े हुए हैं। पश्चिम बंगाल में ही 2.5 करोड़ जमाकर्ता है।