लगभग एक सौ साल बाद भी पोंजी का दबदबा बरकरार है। पोंजी स्कीम सब देशों में लूटने का जरिया बन गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ( मार्च 2, 2016) के अनुसार चीन जहां सरकार काफी सख्त है वहां भी वह सक्रिय है। उसके अपने संवाददाता शैबाल दासगुप्त के अनुसार, चीन के एक न्यायालय ने चौबीस लोगों को डेढ़ अरब डालर के घोटाले के एक मामले में आरोपी घोषित किया है। गिरोह के नेता 32 वर्षीय जियांग होंगवी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। उसी गिरोह के 23 लोगों को 14-14 साल की सजा सुनाई गई है। इन सबने 2 लाख 30 हजार लोगों को भारी चूना लगाया था। इन्होंने अधिकतर वरिष्ठ लोगों की जीवन भर की कमाई अपने द्वारा प्रस्तुत वित्तीय स्कीमों में लगाने के लिए उकसाया। उन्होंने 47 प्रतिशत सलाना लाभांश अथवा ऋण देने का वायदा किया था। चीन जैसे देश में जहां बैंक उनकी जमा राशि पर मात्र 2-3 प्रतिशत ही ब्याज देते हैं, लोग लालच के वशीभूत हो गए। सिन्हुआ न्यू•ा एजेंसी के अनुसार जब इन घोटालेबाजों के विरुद्ध गुआंगडोंग प्रांत के एक न्यायालय में मुकदमा चल रहा था तब पीडि़त निवेशक रोते हुए देखे गए।
घोटालेबाजों ने अपनी ओर से एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया था और छ: बड़े हॉलों में एक प्रदर्शनी लगाई थी। उसको देखकर एक महिला इतनी अभिभूत हो गई कि उसने अपनी जिन्दगी की पूरी कमाई को लगाने का निर्णय लिया। साथ ही उसके पति ने अपनी पूरी बचत को लगा दिया। इस प्रकार पति-पत्नी ने जीवन की पूरी कमाई गंवा दी। न्यायालय ने धोखबाजों के गिरोह की परिसंपत्तियों को जब्त कर लिया है मगर अब तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि पीडि़तों को कोई राहत मिल सकेगी।
कहा जाता है कि चीन में निजी निवेश के बहुत कम अवसर उपलब्ध हैं। इसीलिए लोगों को इस प्रकार की धोखाधड़ी करने वाले अपने चंगुल में फंसा लेते हैं। सरकारी बैंक बहुत कम ब्याज देते हैं और भू संपदा की कीमतें बाजार में बहुत कम हैं। स्टॉक एक्सचेंज के बारे में आम लोगों की समझदारी सीमित है। सरकार के अनुसार कोई भी परिवार मकानों की खरीद के लिए एक हद के आगे पैसे नहीं लगा सकता। कई चीनी नागरिकों ने अपनी कमाई सोने में लगाई है मगर भारत की तुलना में चीन में यह लोकप्रिय विकल्प नहीं है। अनेक चीनी नागरिक अपनी कमाई चोरी-छिपे बाहर ले जाते हैं मगर आए दिन वे पोंजी घोटाले में फंस जाते हैं।
पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में कई पोंजी स्कीमों का हाल के वर्षों के दौरान जन्म हुआ है। पश्चिम बंगाल में 'अनुभवÓ और 'शारदाÓ ने 1990 के दशक में बड़ी हलचल मचाई और अनेक लोग उनके झांसे में आ गए। 1990 के दशक के मध्य में इतना कोलाहल मचा कि लोगों ने सरकार से तुंरत कदम उठाने की मांग की।
कई कंपनियों ने बागानों से जुड़े स्कीमों को प्रस्तुत किया जिनमें लोगों को पैसे लगाने के लिए आमंत्रित किया और बतलाया कि उन्हें भारी मुनाफा मिल सकता है। यहां हम अनुभव प्लांटेशन नामक कंपनी का जिक्र कर सकते हैं और बतलाया गया कि वह कंपनी एक हजार एकड़ पर सागौन के पेड़ लगा सकती है जिसमें निवेशकों ने 400 करोड़ रुपए से अधिक की राशि लगाई निवेशकों के पैसे हड़पने के बाद इन स्कीमों को चालू करने के बाद उनको शुरु करने वाले लापता हो गए।
वर्ष 2013 में पश्चिम बंगाल में शारदा समूह ने कई प्रकार की पोंजी स्कीमों को चालू किया जिनमें लगे लोगों के पैसे डूब गए। सरकार ने तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जब तक अनेक निवेशकों द्वारा आत्महत्या करने की बात सामने नहीं आई। इसके बाद तत्कालीन सरकार ने सेबी के हाथ मजबूत किए। जुलाई 2013 और वर्ष 2014 के दौरान ऐसे कदम उठाए गए जिससे सेबी हस्तक्षेप कर सके।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सहारा, शारदा चिटफंड, रोज वैल्ली होटल्स एंड इंटरटेनमेंट, पर्ल एग्रोटेक कारपोरेशन लिमिटेड आदि कंपनियां सामने आई हैं जिन्होंने निवेशकों से काफी बड़ी रकमें उगाही हैं। सेवी के अनुसार 2014 के दौरान अनुमान लगाया था कि केवल पर्ल एग्रोटेक कारपोरेशन पचास हजार करोड़ रुपए इकट्ठे किए थे। याद रहे कि चाल्र्स पोंजी के नाम से प्रचलित पोंजी स्कीम बुनियादी तौर पर छलावे की निवेश स्कीम है जिसके अंतर्गत नए निवेशकों से प्राप्त पैसों से पहले से मौजूद निवेशकों को लाभांश दिया जाता है।
पर्ल एग्रोटेक कारपोरेशन लिमिटेड ने लोगों को बतलाया कि वे कंपनी में पैसे लगाते समय जमीन के स्वामित्व को खरीद रहे हैं। जब उनको पैसों की दरकार होगी तब कंपनी जमीन बेचकर पैसे वापस दे देगी। कहना न होगा कि उन्हें लाभांश के रूप में बड़ी रकम मिलने का लालच दिखलाया गया।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान पोंजी स्कीम के तहत हजारों करोड़ रुपए उगाहे गए हैं। ऐसा किस प्रकार हुआ है यह जानने के लिए हम वर्ष 2011 के जून में इकॉनामिक टाइम्स में प्रकािशत एक रिपोर्ट देख सकते हैं। पर्ल एग्रोटेक कारपोरेशन लिमिटेड ने निवेशकों से बीस हजार करोड़ रुपए बटोरे और प्रचार के बल पर तीस हजार करोड़ की अतिरिक्त राशि जमा की गई। मिंट में छपी 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार शारदा समूह ने निवेशकों से बीस हजार करोड़ रुपए बटोरी मगर उधर सहारा समूह को काफी बड़ी रकम निवेशकों को लौटानी पड़ी। फिर भी कंपनी पर निवेशकों की भारी रकमें बकाया हैं तभी तो कंपनी के मालिक सुब्रत राय जेल में बंद हैं।
दिलचस्प बात है कि पोंजी स्कीमों के कारण लोग छोटी बचत योजनाओं, म्युचुअल फंडों, शेयरों, बीमा आदि में पहले की अपेक्षा कम निवेश कर रहे हैं क्योंकि पोंजी स्कीमों के तहत चलाए जा रहे निवेश कार्यक्रमों के ऊंचे लाभांश का वायदा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर पर्ल एग्रोटेक कारपोरेशन लिमिटेड निवेशकों को 12.5 से 14 प्रतिशत लाभांश देने का वायदा करता है। शारदा समूह तो 17.5 से 22 प्रतिशत वार्षिक लाभांश देने का वायदा करता है। इनके विपरीत सरकार संचालित दीर्घकालीन जमा राशियों पर दस प्रतिशत से अधिक लाभांश नहीं मिलता।
विदेश से आई पोंजी स्कीमें भारत में भी कार्यरत हैं। स्पीक एशिया, स्टॉक गुरु, एमएमएम आदि ने बेलगाम लाभांश देने की बात की है। स्टॉक गुरु ने प्रतिमाह बीस प्रतिशत लाभांश देने का वायदा किया है। इसी प्रकार स्पीक एशिया ने कहा है कि यदि आप ग्यारह हजार रुपए निवेश करें तो साल के अंत में आपको बावन हजार रुपए की राशि मिलेगी। कहना न होगा कि इस बढ़ती महंगाई के जमाने में लोग इन पोंजी स्कीमों की ओर आकर्षित हुए हैं।
कुछ लोगों ने भारत से जाकर अमेरिका में भी पोंजी स्कीम का कारोबार किया है। यहां हम एक भारतीय अमेरिकी नील गोयल का उदाहरण ले सकते हैं। चौंतीस वर्षीय गोयल ने एक प्रबंधन फर्म की स्थापना की जिसका मुखिया वह स्वयं था। उसने एक परिष्कृत पोंजी स्कीम वर्ष 2006 से वर्ष 2014 तक चलाई। उसने शिकागो में एक जाली व्यापारिक कंपनी बनाई जिसका एकमात्र उद्देश्य निवेशकों को मूर्ख बनाकर पैसे बटोरना था। उसने निवेशकों को बाजार से कहीं अधिक लाभांश देने का वायदा किया। उसने वर्तमान निवेशकों के पैसों से नए निवेशकों को लाभांश दिए। उसने नकली एकाउंट स्टेटमेंट्स भी बांटे।
अंतत: वह पकड़ा गया, उस पर मुकदमा चला। छ: वर्ष की सजा के साथ ही 95 लाख डॉलर से अधिक का जुर्माना लगा परन्तु पकड़े जाने के पहले वह शानशौकत की जिन्दगी गुजारने लगा था।
शारदा घोटाले का सरगना, सुदीप्त सेन अस्सी करोड़ डालर हड़पने के आरोप में जेल में बंद है। स्पष्ट है कि भारत की वित्तीय एवं विनियमनकारी एजेंसियां उसे समय पर पकडऩे और उस पर लगाम लगाने में विफल रही हैं। कहते हैं कि शारदा के मीडिया विभाग के प्रमुख कुणाल घोष, बंगाल पुलिस के भूतपूर्व प्रमुख रजत मजुमदार, पूर्वी बंगाल फुटबॉल क्लब के अधिकारी देवब्रत सरकार, असमिया के गायक सदानंद गोगोई आदि की मिलीभगत के कारण ही यह घोटाला हुआ है। असम पुलिस के भूतपूर्व निदेशक शंकर बरूआ ने आत्महत्या कर ली। असम के भूतपूर्व स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री हिमंत विश्वास के घर इसी सिलसिले में छापा भी पड़ा था।
वर्ष 2008 की 7 मई को हिन्दू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई स्थित गोल्ड क्वेस्ट ऑफिस के लगातार तीन दिनों तक बंद रहने पर पुलिस ने उसके द्वारा ग्राहकों को धोखा देने के आरोप में उस पर छापा मारा। यह कंपनी तेलुगु सिनेमा के लोकप्रिय चन्द्रमोहन की पत्नी चला रही थी। तेलुगु सिनेमा के अनेक कर्मियों, जूनियर कलाकारों और यहां तक कि वरिष्ठ लोगों को भी कंपनी ने ठगा था। एक साल बाद गोल्ड क्वेस्ट घोटाले का पर्दाफाश हुआ और उसका प्रबंध निदेशक और अनेक एजेंट पकड़े गए। उन पर आरोप था कि उन्होंने लोगों को झांसा देकर उनका पैसा हड़पा है।
एक साल बाद वर्ष 2009 में गोल्ड क्वेस्ट घोटाले का पर्दाफाश हुआ और उसके कई एजेंट पकड़े गए। उन पर लोगों को झांसा देकर उनके पैसे हड़पने का आरोप था। पकड़े गए लोगों में कंपनी का प्रबंध निदेशक पुष्पम् अपाला नायडू भी था।
यहां यह प्रश्न उठता है कि एमवे, गोल्ड क्वेस्ट आदि जैसे पिरामिड स्कीम क्यों धराशायी हो जाते हैं। देखा गया है कि मात्र एक प्रतिशत लोग जो कंपनी के शीर्ष पर होते हैं वे शेष 99 प्रतिशत लोगों के पैसे लेकर लापता हो जाते हैं। ध्यान से देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि थोड़े से लोग मल्टी लेबल मार्केटिंग कंपनियां बनाते हैं और लोगों को सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया जाता है। नए सदस्यों को उपहार भी दिया जाता है और उनसे आग्रह किया जाता है कि वे अपने मित्रों को भी कंपनी में लाएं। नए सदस्यों के आने पर उनसे प्राप्त राशि का इस्तेमाल पुराने सदस्यों को भुगतान करने के लिए किया जाता है जिससे वे खुश रहें और अपने दोस्तों को कंपनी के साथ जुडऩे के लिए प्रेरित करें।
1980 के दशक के दौरान पुर्तगाल की दोना ब्रांका कंपनी ने एक स्कीम चालू की जिसके अंतर्गत प्रतिमाह दस प्रतिशत ब्याज देने का वादा किया गया। उसका दावा था कि वह गरीबों की मदद कर रही है किन्तु उस पर चले मुकदमे की सुनवाई के समय स्पष्ट हो गया कि उसका गरीबों से कोई लेना देना नहीं था। यह तथ्य भी सामने आया कि उसने जनता के साढ़े साठ करोड़ यूरो हड़पे थे। 1990 के दशक में रूस में एमएमएम नामक कंपनी ने दुनिया के सबसे बड़ी पोंजी स्कीम को चलाया और दस अरब डालर हड़पे। इक्कीसवीं शताब्दी के दौरान भारत में शारदा समूह की चौहह कंपनियां पोंजी स्कीम चला रही थीं। इस प्रकार पोंजी स्कीम सर्वत्र और सर्वव्यापी है।