कोरबा ! ऊर्जाधानी में चिटफंड कंपनियों पर प्रशासन और पुलिस की नजर टेढ़ी तो हुई है किन्तु ऐसी दर्जनों निजी बैंकिंग कंपनियों पर जांच की गाज नहीं गिर रही जो घर-घर जाकर समूह में व्यक्तिगत कर्ज देते हुए महिलाओं को कर्जदार बना रहे हैं। जिले में शहरी और ग्रामीण अंचलों में महिलाओं का ही समूह बनाकर हजारों रूपए कर्ज देने का काम वर्षों से चला आ रहा है। अनेक अलग-अलग नाम की किन्तु समान प्रवृत्ति के कार्य करने वाले इन गैर बैंकिंग संस्थाओं का एकमात्र लक्ष्य अधिक से अधिक महिलाओं को लोन देना और उनसे ब्याज सहित किश्तों में वसूली करना होता है।
10 हजार से लेकर 50 हजार तक का लोन इनके द्वारा सिलाई, कढ़ाई, छोटे-मोटे व्यवसाय, ब्यूटी पार्लर, राशन दुकान आदि कार्य हेतु दिया जाता है। लोन लेने के बाद अधिकांश ने घर की जरूरतों को पूरा करने, बीमारी का इलाज कराने या दूसरी जरूरतों में रूपए खर्च करते हैं। कंपनियों द्वारा पहले कम राशि का लोन देकर इसका भुगतान होने के बाद ज्यादा राशि दी जाती है। कर्ज की अदायगी साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक के रूप में करना होता है, जिसमें ब्याज की राशि जुड़ी हुई रहती है। कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली फैल चुकी इन कंपनियों के एजेंट श्रमिक बाहुल्य, स्लम बस्ती और निम्न व मध्यम वर्ग की महिलाओं को अपने लक्ष्य में रखते हैं। पहले व्यक्तिगत लोन दिया जा रहा था और अब इसे समूह में परिवर्तित कर दिया गया है। 15 से 20 महिलाओं का समूह में शामिल प्रत्येक सदस्य को उसकी जरूरत अनुसार लोन दिया जाता है परन्तु इसकी वापसी का तरीका बड़ा ही बेढंगा और सिर दर्द बढ़ाने के साथ घरों में विवाद पैदा कर रहा है।
सदस्यों पर डिफाल्टरों का भी रिस्क
सदस्यों को कर्ज देने से पहले कथित कंपनी के एजेंट उसका मकान खुद जाकर देखते हैं और दुकान हो तो उसकी भी जानकारी लेते हैं जहां व्यवसाय करना है। अपनी तरफ से पूरी तस्दीक करने और आवश्यक दस्तावेज लेने के बाद कई बैठक उपरांत कर्ज दिया जाता है। जब किश्तों की अदायगी का समय आता है तब यदि कोई सदस्य किश्त चुका पाने में असमर्थ रहता है तो दूसरे सदस्यों को किश्त जमा करने कहा जाता है। ऐसे में दूसरे सदस्यों पर आर्थिक बोझ बढऩे के साथ ही मानसिक तनाव बढ़ता है। कुछ ऐसे भी सदस्य निकल जाते हैं जो स्वयं कर्ज लेकर यह राशि किसी दूसरे को ब्याज पर दे देते हैं और वह हर महीने किश्त भुगतान करने का भी वादा करता है लेकिन किश्त जमा करने पहुंचता नहीं। कुछ लोग कर्ज लेकर इलाके से ही गायब हो जाते हैं, तब ऐसे लोगों का भी पूरा किश्त भरने का भार शेष सदस्यों पर डाल दिया जाता है और सारा रिस्क समूह के शेष सदस्यों पर थोपा जाता है।
दबावपूर्वक वसूली व अभद्रता का आरोप
हाल ही में ऐसा मामला सामने आया जब कुछ महिलाओं का किश्त आर्थिक कारणों से देने में विलंब हो गया तब कंपनी के एजेंट शाम-रात उनके घर जाकर दबावपूर्वक वसूली पर जोर देते रहे और अभद्रता भी की। दूसरे दिन बैठक में दोपहर 12 बजे से शाम 4 बज गये और जब तक दूसरी महिलाएं नहीं पहुंचीं, बैठक में आयी महिलाओं का किश्त जमा न कर दूसरी सदस्यों के आने तक भूखा-प्यासा बिठाए रखा गया। इस कंपनी से लोन लेने वाली महिलाओं में से 3 फरार हो गईं हैं। इनका भी किश्त दो साल तक भुगतान करने के लिए बार-बार दबाव बनाया जाता रहा। जब इंकार किया गया तो पुलिस व न्यायालय में घसीटने की धमकी दी गई। मधु सिंह, काजल, किरण, संतोषी, हरविंदर, ममता, दूज बाई ने इस तरह का आरोप लगाते हुए बताया कि लोन देने से पहले कोई शर्त नहीं रखी थी और न कार्रवाई की बात की थी और अब अपना रूपया डूबने पर धमकी दी जा रही है। आखिर दूसरे का किश्त और जो फरार हो चुके हैं उनका रिस्क हम क्यों लें जबकि लोन देने से पहले एजेंट ने खुद उनका घर देखा था और बात की थी। एजेंटों के रवैये से घर में तनाव और मारपीट की नौबत आ रही है। किसी की बीमारी, काम की मजबूरी समझने के बजाय एजेंट जबरन अपने हिसाब से सबको बंधक की तरह बिठाकर रखते हंै।
लोन दिलाने लाखों की ठगी
इन महिलाओं ने खुलासा किया कि फरार तीनों महिलाओं ने अलग-अलग कंपनियों से हजारों रूपए कर्ज लेकर इकट्ठा किया और लाखों रूपए लेकर भाग निकली हैं। दो महिलाओं ने तो महाराष्ट्र के किसी रिशी नामक व्यक्ति को अपना रिश्तेदार बताकर एक महीने तक किराये के मकान में रखा और वह पुरानी बस्ती, सीतामणी, बालको, दर्री आदि क्षेत्र में घूमकर लोन दिलाने के एवज में कमीशन की राशि लगभग 50 लाख रूपए एकत्र कर फरार हो गया। इसके साथ ही दोनों महिलाएं भी लोगों से व्यक्तिगत और कंपनियों से कर्ज लेकर लाखों रूपए बटोर भाग निकली हैं। ये सभी किराएदार के रूप में यहां रहते हुए मकान को अपना बताकर कर्ज लिया और चंपत हो गईं। व्यक्तिगत तौर पर लिए गए कर्ज के एवज में 2.50 लाख रूपए का चेक एक महिला ने कर्जदाता को थमाया जो बाऊंस हो गया है। इसकी शिकायत पुलिस से की गई है।
बढ़ रही कमीशनखोरी की प्रवृत्ति
निम्न वर्ग के लोगों को स्व रोजगार से जोडऩे के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न ऋण योजनाओं के अलावा शासकीय बैंकों से सांठगांठ पूर्वक लोन निकलवाने की बात हो या गली-गली घूम रहे निजी कंपनियों से किश्तों में कर्ज दिलाने की बात हो, इन सबके एवज में कमीशनखोरी की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। 50 हजार में 5 हजार, 1 लाख में 10 हजार, 2 लाख में 20 हजार रूपए कमीशन का रेट तय किया गया है। खास बात यह है कि अब महिलाएं भी इस दलदल में उतरती जा रही हैं और कंपनियों से सांठ-गांठ कर अस्थायी तौर पर रहने वालों (किराएदारों) को समेटकर इन्हें कर्ज दिला रही हैं और इसके एवज में 2 से 3 हजार रूपए कमीशन उठा रही हैं। यह काम सामाजिक बुराई के रूप में काफी तेजी से फैल रहा है और कई महिलाएं धोखाधड़ी का शिकार हो रही हैं तो कुछ महिलाएं मजबूरियों का लाभ उठाकर दूसरों को कर्ज के दलदल में डुबा रही हैं। इन सबकी एक बड़ी वजह सरकार की ऋण योजनाओं का सीधे तौर पर सरल व समुचित लाभ नहीं मिलना बताया जा रहा है।