सतलोक आश्रम का स्वयंभू संत रामपाल कॉरपोरेट स्टाइल में मल्टी लेवल मार्केटिंग की तर्ज पर अनुयायियों की फौज खड़ी करता था। इसके लिए वह सबसे आसान टारगेट अनपढ़ व अंध विश्वास में जीने वालों को बनाता था। वह आश्रम में आने वालों को अपने साथ दो-दो भक्त और जोड़कर लाने का आदेश देता था। यही कारण है कि रामपाल के भक्तों का जाल हरियाणा से बाहर दूसरे राज्यों में खूब फैला। इसमें सबसे ज्यादा अनुयायी आदिवासी इलाकों के लोग थे जो आसानी से रामपाल के शब्दजाल में फंसकर सैंकड़ों किलोमीटर दूरी की यात्रा कर सतलोक आश्रम पहुंच जाया करते थे। इन अनपढ़ व आदिवासियों में रामपाल के प्रति इतनी अंध भक्ति थी कि उनके पारिवारिक संस्कार तक रामपाल के आशीर्वाद के बिना अधूरे माने जाते थे।
मिली जानकारी के अनुसार, रामपाल ने अपने अनुयायियों की फौज बढ़ाने के लिए मल्टीलेवल मार्केटिंग वाला फार्मूला अपनाया हुआ था। वह आश्रम में आने वालों को अपने साथ दो-दो भक्त और जोडक़र लाने का आदेश देता था। यह सिलसिला चार महीने तक चलता था। इस दौरान अनुयायी के बारे में पूरी पड़ताल होती थी और तब जाकर आश्रम में व्यक्ति का नए अनुयायी के तौर पर रजिस्ट्रेशन होता था।
जानकारी के मुताबिक, नए अनुयायी को आश्रम के रीति-रिवाजों व नियमों की घुट्टी पिलाई जाती थी। सतलोक आश्रम से पुलिस ऑपरेशन के बाद शुरू हुई छानबीन में उस समय सामने आई जब इन राज्यों के काफी अनुयायी आश्रम के अंदर से बाहर लाए गए। यह बात सामने आई कि ये लोग कई-कई दिनों तक आश्रम में रुककर अपने अनुष्ठान करते थे। इन्हें लगता था कि रामपाल के आशीर्वाद के बिना हर अनुष्ठान अधूरा है।
यह बात भी सामने आई है कि मध्यप्रदेश के गुना जिले के आदिवासी बहुल गांव डिगडोली, मढ़ीखेड़ा, साजरवाले, करमदी, डोगर, चाकरी, डोंगरी आदि गांवों ने रामपाल की अंध भक्ति में उसका पंथ अपना लिया था। इनके घरों के अंदर पूजा वाली जगह पर रामपाल का चित्र खास जगह बना चुके थे। ये रामपाल के चित्र को कबीर के साथ रखते थे। उनके अलावा किसी और देवी-देवता की तस्वीर की जगह नहीं थी।
आदिवासियों के पूजा करने का भी अलग ढंग था। वे दिन में 108 बार रामपाल के नाम का जाप करते थे और इस दौरान घी का दीया जलता था। इस दौरान तंबाकू के सेवन पर प्रतिबंध रखा जाता था। इसी तरह शादी के मामले में रामपाल के नाम का जप चलता था। ये लोग अपने घरों में फेरे करवाने की बजाए सीधे आश्रम पहुंचते थे। यहां इन्हें रामपाल का आशीर्वाद मिलता था और इस तरह जोड़े की शादी पूर्ण मान ली जाती थी। आश्रम की तरफ से इन अंध भक्तों को कुछ और नियमों पर चलने का आदेश मिलता था।