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Modi year: unchanged for Banaras

Modi year: unchanged for Banaras

वाराणसी: सालभर पहले आम चुनाव में बनारस के लोगों ने बड़े उत्साह से नरेंद्र मोदी को भारी मतों से जिताकर संसद भेजा था। यहां के सांसद प्रधानमंत्री बने। चुनावी सभाओं में उन्होंने बड़ी-बड़ी बातें कही थीं। वादा था बनारसी साड़ी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने और काशी की जान बुनकरों की दशा सुधारने की। उनके वे वादे कब दावे में तब्दील होंगे, यह इंतजार सबको है।



यहां के लोग मोदी सरकार के एक साल के कामकाज को लेकर थोड़ा निराश नजर आते हैं। उनका कहना है कि सरकार को सबसे पहले यहां की मूलभूत समस्याओं को दूर करने पर ध्यान देना चाहिए। स्थानीय लोगों का कहना है कि वाराणसी संसदीय सीट से सांसद नरेंद्र मोदी एक वर्ष बीत जाने के बाद भी काशी की समस्याओं को सही तरीके से नहीं समझ पाए हैं।



लोग कह रहे हैं कि एक वर्ष बाद भी यहां सीवर की समस्या दूर नहीं हुई और न ही यहां के बुनकरों के कल्याण के लिए कोई काम हुआ। सामाजिक सरोकरों से जुड़ी ‘सत्या फाउंडेशन’ के प्रमुख चेतन उपाध्याय ने कहा, ‘एक वर्ष बीत गए। सोचा था काशी का कायापलट हो जाएगा। मगर बनारस की छोटी-छोटी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि केवल बनारस में 2000 जगहों पर सीवर के मेनहोल खुले पड़े हुए हैं। रात की बात तो छोड़िए, दिन में भी चलना मुश्किल होता है।’



उपाध्याय कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने काशी की तुलना जापान के क्योटो शहर से की थी और कहा था कि उसी तर्ज पर इसे विकसित करना है, लेकिन जब तक यहां की मूलभूत समस्याएं ठीक नहीं होंगी, तब तक यह सब कैसे संभव है। वह कहते हैं, ‘बनारस को स्वच्छ और साफ-सुथरा बनाने के लिए कम से कम 10 कूड़ा निस्तारण प्लांट लगाने की जरूरत है। वर्तमान में अभी सिर्फ एक प्लांट करसड़ा में है और वह भी बंद पड़ा है। यूं कहें कि अभी तक कूड़े के निस्तारण का कोई वैज्ञानिक हल नहीं निकल पाया है।’



चेतन हालांकि यह भी स्वीकार करते हैं कि बनारस में कुछ जगहों पर वाकई काम हुआ है और मोदी के स्वच्छता अभियान का असर रेलवे स्टेशन और बनारस के घाटों पर जरूर दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मोदी जब पहली बार बनारस आए थे तो उन्होंने बुनकरों के लिए काफी बातें कही थीं। सुविधाओं के आभाव में आज वाराणसी के बुनकरों की हालत खस्ता है।



मोदी ने नवंबर में बनारस के दौरे के समय बुनकरों के लिए हस्तशिल्प कला केंद्र और व्यापार केंद्र की नींव रखी थी, लेकिन अभी तक इस पर काम भी शुरू नहीं हो पाया है। पिछले चार दशकों से बुनकरी के काम में लगे राजनारायण मौर्य भी मोदी से काफी खफा हैं। वह कहते हैं कि मोदी सरकार ने एक वर्ष के भीतर बुनकरों के लिए कुछ नहीं किया। सुविधाओं के आभाव में काम ठप्प है।



जैतपुरा के असमलम सिद्दीकी वर्ष 1994 से ही बुनकरी के काम से जुड़े हैं। वह एनडीए सरकार के कामकाज से नाखुश तो हैं, लेकिन वह मोदी को अभी और समय देना चाहते हैं। वह कहते हैं, ‘काशी में गुजरात के उद्योगपतियों की तरफ से अत्याधुनिक तरीके की मशीनें लाई जा रही हैं, लेकिन उनकी कीमत इतनी ज्यादा है कि आम बुनकर की पकड़ से बाहर हैं।’



उन्होंने कहा कि बुनकर यदि किसी तरह से माल तैयार भी करता है तो उसे न तो बाहर भेजने की व्यवस्था हो पाई है और न ही उसकी सही तरीके से ब्रांडिंग हो पा रही है। असलम कहते हैं, ‘बनारस भोलेनाथ की नगरी है। बनारस के लोगों में बड़ा धैर्य है, लेकिन उसके धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए। काम होगा तो सभी लोग खुले दिल से तारीफ करेंगे, चाहे वह किसी जाति या धर्म के हों।’+


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  • 19 May, 2015
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