नई दिल्ली। एक तरफ सरकार 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से करीब 65 हजार करोड़ रुपए जुटाने की तैयारी में है। वहीं नीलामी में जब केवल महीने का समय बचा है, तो टेलीकॉम कंपनियां टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी दे रही हैं। कंपनियों के अनुसार स्पेक्ट्रम की ऊंची कीमतों के कारण कंपनियों पर भारी बोझ पड़ेगा। ऐसे में सरकार को नीलामी के लिए तय कीमतों पर फिर से विचार करना चाहिए। यदि सरकार ऐसा नहीं करती हैं तो नीलामी के बाद टैरिफ दरों में भारी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
गुरुवार को सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद को लिखे पत्र में कहा है कि 900 मेगाहटर्ज के लिए कैबिनेट द्वारा तय कीमतों से इंडस्ट्री पर प्रतिकूल असर होगा। साथ ही टैरिफ में बढ़ोत्तरी हो सकती है, जिसका असर ग्राहकों पर होगा। इसके पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 5 जनवरी को 800 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का बेस प्राइस 3,646 करोड़, 900 मेगाहर्ट्ज के लिए 3,980 करोड़ और 1,800 मेगाहर्ट्ज के लिए 2,191 करोड़ रुपए तक किया है।
कर्ज में डूबी हैं टेलीकॉम कंपनियां
एसोसिएशन के अनुसार सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम के लिए 900 मेगाहर्टज का रिजर्व प्राइस 18 सर्किल के लिए तय किया है, वह 32.5 फीसदी ज्यादा है। जो कि प्रासंगिक नही है। इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार कंपनियां तय कीमतों से इसलिए परेशान हैं, क्योंकि एक तो कीमतें ज्यादा हैं, दूसरे उन पर मार्च 2014 तक उनका कुल कर्ज 2.56 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। ऐसे में नीलामी के लिए पूंजी जुटाना बहुत मुश्किल होगा।
बैंकों से कर्ज मिलना मुश्किल
पहले से कर्ज में डूबी कंपनियों के लिए स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए पूंजी जुटाना भी मुश्किल है। उनके लिए बैंकों से कर्ज मिलना आसान नहीं होगा। जिसे देखते हुए अब वह प्रस्तावित कीमत पर नीलामी होने पर टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी दे रही हैं।
स्पेक्ट्रम खरीदना मजबूरी
कंपनियां नवंबर 2012 की तरह इस बार नीलामी को नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं। एयरटेल, वोडाफोन सहित प्रमुख कंपनियों के लाइसेंस साल 2015-16 में खत्म हो रहे हैं। ऐसे में अपनी सेवाएं देने के लिए उनका लाइसेंस रिन्यू करना जरूरी है। जिसे देखते हुए उन्हें हर हाल में नीलामी करनी होगी। इसकी कारण एसोसिएशन ने सिफारिश की है कि सरकार ट्राई द्वारा प्रस्तावित कीमतों पर विचार करें। ट्राई ने साल 2010 में तय कीमतों के अनुसार 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की बात कही थी। जिसे डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम ने नजरअंदाज कर, बढ़ी कीमतों की सिफारिश कैबिनेट के पास भेजी थी।
बहुत मुश्किल नहीं पूंजी चुकाना
टेलीकॉम कंपनियां भले ही ऊंची कीमतों की बात कर रही हैं, लेकिन उनके लिए स्पेक्ट्रम खरीदने की लागत चुकाना इतना भी मुश्किल नहीं है। 900 मेगाहर्टज के लिए कंपनियों को कुल कीमत का केवल 25 फीसदी हिस्सा ही शुरू में चुकाना पड़ेगा। जबकि बाकी की राशि दो साल बाद 10 साल में समान किस्तों में चुकानी होगी। इसी तरह 1800 मेगाहर्टज के लिए उन्हें शुरू में 33 फीसदी,, जबकि बाकी की पूंजी दो साल बाद 10 साल में 10 समान किस्तों में चुकानी होगी।