राजेश चौधरी, नई दिल्ली: आने वाले समय में पति के संन्यासी बनने पर, गायब होने पर या शारीरिक और मानसिक तौर पर अक्षम हो जाने पर, पत्नी संयुक्त परिवार के सदस्यों से गुजारा भत्ता क्लेम कर सकती है। इसके लिए लॉ कमिशन ने कानून में बदलाव की सिफारिश की है। फिलहाल, पत्नी संयुक्त परिवार के सदस्यों से गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है।
लॉ कमिशन के चेयरमैन जस्टिस ए.पी. शाह की अगुआई में इस मामले पर एक स्टडी की गई। फिर कानून मंत्रालय से मंगलवार को सिफारिश की गई है कि हिंदू एडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 में बदलाव किया जाए। यह व्यवस्था की जानी चाहिए कि अगर संयुक्त परिवार में रहने वाली महिला का पति अपनी पत्नी के मेंटेनेंस में सक्षम नहीं है, तो महिला अपने और बच्चों के लिए जॉइंट फैमिली मेंबर से गुजारा भत्ता ले सकती है। ऐसी स्थिति में ससुर को गुजारा भत्ता देना होगा।
हालांकि यह गुजारा भत्ता तभी तक मिलेगा, जब तक परिवार की प्रॉपर्टी का बंटवारा नहीं हो जाता। यानी अगर महिला के पति को अपना हिस्सा मिल चुका है, तो वह भत्ते के लिए संयुक्त परिवार के सदस्यों से दावा नहीं कर सकती।
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया था, जिसमें एक महिला का पति मानसिक तौर पर ठीक नहीं था। महिला हिंदू संयुक्त परिवार में थी और उसने गुजारा भत्ते के लिए गुहार लगाई थी। कोर्ट ने इस मामले में लॉ कमिशन से इस कानून के खालीपन को भरने की सिफारिश की थी।
मौजूदा हिंदू एडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस ऐक्ट की धारा-18 के मुताबिक पत्नी के गुजारा भत्ता की जिम्मेदारी पति पर होगी और धारा-19 के मुताबिक अगर महिला विधवा है, तो भत्ता ससुर देगा, लेकिन ऐक्ट में अक्षम शख्स की पत्नी के मेंटेनेंस के अधिकार के बारे में कोई प्रावधान नहीं है।