Reported by Rajasthan Patrika: रंग हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं। हर रंग का अपना महत्व है। जहां सफेद रंग शांति और सुकून देता है वहीं काला रंग उदासी व हताशा का प्रतीक माना गया है। रंगों के महत्व को महसूस करने के लिए प्रकृति को करीब से निहारिए, आपको खुद ब खुद अहसास हो जाएगा कि रंग हमारे तन व मन में नई ऊर्जा, उमंग और उत्साह का संचार करते हैं।
रंगों की दुनिया मनोवैज्ञानिकों के लिए आज भी पहेली है। वे हजारों वर्षों से इनमें छिपे अर्थ खोज रहे हैं। रंग किस तरह से हमारी जिंदगी को प्रभावित करते हैं इसके लिए विज्ञान की एक अलग शाखा है। इसे एग्रोनॉमिक्स कहा जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रंगों से उपचार की प्रक्रिया को क्रोमोथैरेपी का नाम दिया गया है। इसमें रोगों के उपचार के लिए दवाओं की बजाय रंगों का प्रयोग किया जाता है।
क्रोमोथैरेपी में रंगों को उनके प्रभाव के अनुसार दो भागों में बांटा गया है। पहला, गर्म प्रभाव और दूसरा, ठंडा प्रभाव।
गर्म प्रभाव के रंग
नेचुरोपैथी विशेषज्ञ डॉ. रमाकांत शर्मा के अनुसार क्रोमोथैरेपी में रोगों की प्रकृति से विपरीत रंग का प्रयोग किया जाता है। जैसे अस्थमा, सर्दी-खांसी-जुकाम, मोटापा और हाइपोथायरॉइड जैसी ठंडी प्रकृति की बीमारियों के लिए लाल, पीला, नारंगी और काले रंग जैसे गर्म प्रभाव के रंगों का प्रयोग किया जाता है।
ठंडे प्रभाव के रंग
इसके अंतर्गत सफेद, नीला, बैंगनी और हरे रंग को महत्व दिया गया है। हाई ब्लड प्रेशर, पेट में जलन, तनाव, अल्सर, गुस्सा और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओं के लिए इन रंगों को प्रयोग में लिया जाता है।
उपचार का तरीका
इलाज के लिए रोगी को बीमारी के प्रभाव के अनुसार उससे संबंधित रंग की सब्जी व फल खाने या उस रंग के कपड़े पहनने के लिए कहा जाता है। किसी भी गंभीर रोग होने की स्थिति में रोगी को आराम मिलने में 20 से 30 दिन का समय लग जाता है।
भाव-स्वभाव और रंग
ठंडी प्रकृति के रोग जैसे सर्दी, जुकाम, खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, मोटापा और हाइपोथायरॉइड होने पर लाल, पीले, संतरी या काले रंग के कपड़े पहनकर धूप में बैठ जाएं या इन्हीं रंगों में से किसी एक रंग की चादर ओढ़कर धूप में लेटें। इसके अलावा गर्म प्रभाव के रंगों का साफा या स्टोल भी पहना जा सकता है।
इसी तरह गर्म प्रकृति के रोग जैसे हाई ब्लड प्रेशर, अल्सर, पेट में जलन, तनाव आदि होने पर नीले, हरे, सफेद और बैंगनी रंग के कपड़े पहनें या इसी रंग की फल व सब्जियां जैसे खीरा, लौकी, करेला, पालक, नींबू, शिमला मिर्च, धनिया, पुदीना, मैथी, तुरई, ब्रोकली, पत्तागोभी, बैंगन, शलजम, मूली, जामुन, अमरूद और अंगूर आदि खाएं।
नीला रंग: नीला रंग आंखों को आराम प्रदान करता है। मन को शीतलता देकर क्रोध को शांत करता है। इस रंग को ताजगी और स्फूर्ति का भी प्रतीक माना गया है।
हरा रंग: यह रंग आत्मविश्वास, जीवन जीने की चाह और उत्साह को बढ़ाता है।
गुलाबी रंग: यह कोमलता और भावुकता का प्रतीक है।
भूरा रंग: भूरा रंग दृढ़ता का।
सफेद रंग: सहयोग, शांति और निष्ठा का प्रतीक है। यह तन व मन को शांत रखता है।
पीला रंग: पीला रंग खुशी का सूचक है जो मन में उमंग व उत्साह का संचार करता है।
लाल रंग: लाल रंग हृदय की धड़कन बढ़ाता है। यह शरीर को ऊर्जा देने के साथ-साथ साहसी भी बनाता है।
पानी व तेल का प्रयोग करें ऐसे
क्रोमोथैरेपी के अंतर्गत रोगों के उपचार के लिए तेल या पानी को सूर्य की किरणों के माध्यम से चार्ज किया जाता है। इस लिक्विड चार्ज के लिए कांच की एक पारदर्शी बोतल लें। इस बोतल को गर्म या ठंडे प्रभाव के रंगों में से किसी एक रंग की शीट से पूरी तरह कवर कर लें।
अब इस बोतल में पानी या तेल डालकर इसके ऊपर लकड़ी का कॉर्क (ढक्कन) लगा दें। इस बोतल को लकड़ी के पट्टे पर 12-24 घंटे के लिए धूप में रखें। ध्यान रहे कि शाम होने पर बोतल को उठा लें और अगले दिन फिर से सूरज की रोशनी में रख दें।
इस तरह से तैयार हुए पानी को 40 से 50 मिलिलीटर (एक बार में) की मात्रा में सुबह-दोपहर-शाम को पीने से लाभ होगा। इसी तरह से चार्ज हुए तेल से पूरे शरीर की मालिश करने से भी रोगों में आराम मिलता है। किसी भी तरह का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही करें।