नई दिल्ली: झांसा देकर जुटाये या बगैर-कायदे कानून के चलने वाली जमा योजनाओं पर सरकार नकेल कसने की तैयारी में है. एक अंतर मंत्रालयी समूह ने एक नए कानून का खाका सामने रखा है जिस पर वित्त मंत्रालय ने 30 अप्रैल तक सुझाव मांगा है. कानून बनने के बाद ऐसे जमा जुटाने वालों को 10 साल तक जेल की सजा और जुटायी रकम के दोगुने तक बतौर जुर्माना भरना होगा.
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का अनुमान है कि गैर-कानूनी जमा योजनाओं के जरिए देश भर में करीब 6 करोड़ लोगों से करीब 68 हजार करोड़ रुपये जुटाये गए. पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित शारदा चिटफंट घोटाले की ही बात करें तो अकेले इसी में लाखों लोगों से 24 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए गई. देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से और अलग-अलग तरीके से झांसा देकर पैसा जुटाया जाता रहा है. इसी के बाद सरकार ने एक नया कानून बनाने की कवायद शुरु की. हम आपको याद दिला दे कि वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इस बजट में गैर-कानूनी जमा पर लगाम लगाने के लिए एक विस्तृत कानून बनाने की बात कही.
गैर-कानूनी जमा को आप पोंजी स्कीम, कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम, मल्टी लेयर मार्केटिंग स्कीम या फिर किसी भी नाम से पुकार सकते है, सबमें एक चीज आम होती है और वो है बाजार के चलन से कहीं ज्यादा कमाई का झांसा. आप इसे कुछ यूं भी समझ सकते हैं. जब सरकारी सुरक्षा के साथ लायी गयी नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC) या पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) में 8.1 फीसदी का ब्याज मिल रहा होता है तो आपके सामने 18 से 24 फीसदी की दर से सालाना ब्याज का झांसा दिया जाता है. इस लालच में निरक्षर ही नहीं, अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी आते रहे हैं. वैसे तो बीते सालों में समय-समय पर इस तरह की योजनाओं पर लगाम लगने की बात लगती रही, लेकिन शारदा चिटफंड घोटाले के बाद मुहिम ने जोड़ पकड़ी.
अभी सबसे बड़ी समस्या ये है कि अलग-अलग जमा योजनाओं को अलग-अलग संस्थाएं रेग्युलेट करती है. इससे कई तरह की कानूनी अड़चने भी आ जाती हैं. हालांकि हाल ही में कानून बनाकर 100 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की रकम जुटाने के लिए सेबी से मंजूरी जरुरी की गयी. लेकिन इससे परेशानी पूरी तरह से दूर नहीं होने वाली. इसके अलावा पोंजी स्कीम पर लगाम के लिए एक कानून Prize Chits and Money Circulation Scheme (Banning) Act, 1978 भी है.
इस कानून पर अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है. लेकिन झांसा देने वालों ने इसका तोड़ कुछ इस तरह निकाला कि एक राज्य के प्रमोटर से दूसरे राज्य में कम्पनी रजिस्टर्ड कराने के बाद तीसरे राज्य से पैसा जुटाकर चौथे राज्य में निवेश कर लिया. अब यहां कौन सी राज्य सरकार कार्रवाई करेगी? इसी सब को ध्यान के मद्देनजर संसद की स्थायी समिति ने भी कानूनी दिक्कतों को दूर करने की सिफारिश की. नए कानून का खाका इन्ही सब प्रयासों का नतीजा है.
विभिन्न जमा योजनाओं के रेग्युलेटर
जमा योजना | रेग्युलेटर |
पंजीकृत सहकारी समितियों की जमा योजना | संबंधित राज्य सरकार |
पंजीकृत बहु-राज्यीय सहकारी समितियों की जमा योजना | कृषि मंत्रालय, भारत सरकार |
एनबीएफसी की जमा योजना | भारतीय रिजर्व बैंक |
बीमा योजना | इरडा |
पेंशन योजना | पीएफआरडीए/ईपीएफओ |
कॉरपोरेट डिपॉजिट | कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय |
निधि या म्यूचुअल बेनिफिट कम्पनी की जमा योजनाएं | कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय |
चिट फंड | संबंधित राज्य सरकार |
म्यूचुअल फंड और कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम | सेबी |
अंतर-मंत्रालयी समूह ने गैर-कानूनी जमा योजना को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है, ”एक ऐसी योजना या व्यवस्था जहां कोई जमा जुटाने वाली संस्था कारोबार के रूप में ऐसी जमा स्वीकार करती है जो नियमित नहीं है.” नियमित का यहां मतलब किसी संस्था के साथ पंजीकरण होना है. एक बात यहां गौर करना जरूरी है कि किसी संस्था का पंजीकरण होना जमा जुटाने की छूट नहीं देता. जमा के लिए तय रेग्युलेटर मसलन सेबी या रिजर्व बैंक से अनुमति जरूरी है. आम तौर पर कई संस्थाएं, कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय से कराए पंजीकरण को जमा जुटाने की मुहिम में कुछ इस तरह प्रचारित करती है कि अमुक जमा योजना के लिए सरकार का समर्थन है और लोग झांसे में आ जाते हैं. लिहाजा ये जरूर देख ले कि संस्था ही नहीं, किसी जमा योजना के लिए सरकारी अनुमति है या नहीं.
समूह ने बिल के मसौदे में प्रस्ताव किया है