नितिन प्रधान, नई दिल्ली। कायदे कानून को ताक पर रखकर चल रही डिपाजिट स्कीमों पर सरकार नकेल कसने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने एक नए कानून का खाका तैयार किया है जिसमें न सिर्फ दस साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है बल्कि जुटाई गई रकम का दोगुना जुर्माने का प्रस्ताव भी शामिल है। वित्त मंत्रालय ने इस नए कानून का खाका सार्वजनिक कर 30 अप्रैल तक इस पर सुझाव मांगे हैैं।
इस नए कानून का खाका सरकार के एक अंतर मंत्रालयी समिति ने तैयार किया है। समिति ने गैर-कानूनी डिपाजिट स्कीम्स को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है, 'एक ऐसी योजना या व्यवस्था जहां कोई जमा जुटाने वाली संस्था कारोबार के रूप में ऐसी जमा स्वीकार करती है जो नियमित नहीं है। नियमित का यहां मतलब किसी संस्था के साथ पंजीकरण होना है। हालांकि किसी संस्था का पंजीकरण होना डिपाजिट जुटाने की छूट नहीं देता। इसके लिए तय रेगुलेटर मसलन सेबी या रिजर्व बैंक से अनुमति जरूरी है।
क्यों जरूरी है नया कानून
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) का अनुमान है कि गैर-कानूनी डिपाजिट योजनाओं के जरिए देश भर में करीब 6 करोड़ लोगों से करीब 68000 करोड़ रुपये जुटाये गए। पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित शारदा चिटफंट घोटाले में ही लाखों लोगों से 2400 करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए गई। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से और अलग-अलग तरीके से झांसा देकर पैसा जुटाया जाता रहा है।
इसी के बाद सरकार ने एक नया कानून बनाने की कवायद शुरु की। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इस बजट में गैर-कानूनी डिपाजिट पर लगाम लगाने के लिए एक विस्तृत कानून बनाने की बात कही।
क्या हैैं पोंजी स्कीमें
गैर-कानूनी डिपाजिट को आमतौर पर पोंजी स्कीम, कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम, मल्टी लेयर मार्केटिंग स्कीम या फिर अन्य किसी भी नाम से पुकारा जाता है। सबमें एक चीज आम होती है और वो है बाजार के चलन से कहीं ज्यादा कमाई का झांसा। जब सरकारी सुरक्षा के साथ लायी गयी नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएसएस) या पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) में 8.1 फीसदी का ब्याज मिल रहा होता है तो आपके सामने 18 से 24 फीसदी की दर से सालाना ब्याज का झांसा दिया जाता है।
इस लालच में निरक्षर ही नहीं, अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी आते रहे हैं। वैसे तो बीते सालों में समय-समय पर इस तरह की योजनाओं पर लगाम लगने की बात लगती रही, लेकिन शारदा चिटफंड घोटाले के बाद मुहिम ने जोड़ पकड़ी।
बड़ी संख्या में रेगुलेटर
अभी सबसे बड़ी समस्या ये है कि अलग-अलग डिपाजिट योजनाओं को अलग-अलग संस्थाएं रेगुलेट करती है। इससे कई तरह की कानूनी अड़चने भी आ जाती हैं। हालांकि हाल ही में कानून बनाकर 100 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की रकम जुटाने के लिए सेबी से मंजूरी जरुरी की गयी। लेकिन इससे परेशानी पूरी तरह से दूर नहीं होने वाली। इसके अलावा पोंजी स्कीम पर लगाम के लिए एक कानून प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट 1978 भी है।
इस कानून पर अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। लेकिन झांसा देने वालों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। जानकारों के मुताबिक एक राज्य के प्रोमोटर से दूसरे राज्य में कम्पनी रजिस्टर्ड कराने के बाद तीसरे राज्य से पैसा जुटाकर चौथे राज्य में निवेश कर लिया जाता है। ऐसे में कौन सी राज्य सरकार कार्रवाई करे, इसकी उलझन पैदा हो जाती हैै।
इसी को ध्यान में रखते हुए संसद की स्थायी समिति ने भी कानूनी दिक्कतों को दूर करने की सिफारिश की। नए कानून का खाका इन्ही सब प्रयासों का नतीजा है।
क्या हैैं बिल के प्रस्ताव
- कोई भी संस्था प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, विज्ञापन के जरिए या फिर लोगो से आग्रह कर अनियमित जमा योजना नहीं चलाएगी।
- इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर कम से कम तीन और ज्यादा से ज्यादा 10 साल तक की सजा। साथ ही जुटाए गए कुल डिपाजिट का दो गुना तक जुर्माना
- नियमित डिपाजिट स्कीम में मियाद पूरी होने पर धोखा कर पैसा वापस नहीं चुकाने पर सात साल तक की सजा का प्रावधान। साथ ही 5 लाख से 25 करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी
- बार-बार जुर्म करने वालों को 10 साल तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है और 50 करोड़ रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।
- अपराध साबित होने पर अपराध के वक्त जवाबदेह अधिकारी पर कार्रवाई और सजा का प्रावधान। अधिकारियों में कम्पनी के निदेशक से लेकर प्रबंधक तक शामिल।
- जमाकर्ताओं के पैसे जुटाने के लिए संपत्ति जब्त करने का भी प्रावधान।
See Also: चिटफंड कंपनी से परेशान होकर की खुदकुशी, कंपनी ने किया किनारा