आज महिलाओं को घर की चार दीवारों से निकलकर खुद की क्षमताओं को पहचानने की जरूरत है। महिला दिवस के बहाने स्वाभिमान की इस राह पर आज ही से शुरुआत कर दें। बता रही हैं क्षमा शर्मा
आठ मार्च फिर आ गया। दुनिया भर की औरतों का अपना दिन। उन्हें महत्व प्रदान करने वाला ऐसा अनोखा त्योहार, जिसे मनाने के लिए किसी धर्म, देश या जाति का बंधन नहीं। गरीबी-अमीरी का भेद नहीं। पढ़ी-लिखी, अनपढ़ स्त्री सबके लिए बराबर। दुश्मनी की सीमाओं को खत्म करता, दोस्ती और एक-दूसरे के हाथ को थामने वाला त्योहार। दुनिया में यह दिन सबका, सबके लिए और सबके घर में मनाए जाने के लिए है। आखिर दुनिया के हर घर में अगर आदमी रहते हैं, तो औरतें भी रहती हैं।
नौकरीपेशा औरतें, स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां जहां इसे हैप्पी वुमेंस डे कहकर सेलिब्रेट करती हैं, तो वहीं विज्ञापन जगत में तरह-तरह के उत्पादों, कपड़े, जेवर, चप्पल, पर्स, चश्में, घडियों आदि पर महिलाओं को छूट देने की होड़ मच जाती है। ग्रामीण महिलाओं में अभी यह सोच कम है। उसे जागृत करने की जरूरत है। उन्हें उनके अधिकारों के प्रति चेतना चाहिए। यह तभी बढ़ सकती है, जब वे भी अपने अधिकार जानें। हमारे देश का यह कड़वा सच है कि संगठित क्षेत्र में जो अधिकार और सुविधाएं औरतों को मुहैया की जाती हैं, वे असंगठित क्षेत्र में आज भी नहीं हैं। जबकि ज्यादा औरतें असंगठित क्षेत्र में ही काम करती हैं।
औरतों का दिन यानी कि संसार की औरतों की एकजुटता, एक साथ कदम मिलाकर दुनिया को जीतने की ताकत। लेकिन जब हम दुनिया को जीतने की बात करते हैं, तो क्या सचमुच यह बात सिर्फ कहने भर को है या हम कुछ ऐसा करना भी चाहते हैं? हर क्षेत्र में आज की सफल औरतों को देखकर तो लगता है कि नहीं, यह बात सिर्फ कहने के लिए नहीं, करके दिखाने के लिए है। वे दिखा भी रही हैं। बस अवसर मिलने, उसे समझने और उसके अनुसार सही कदम उठाने की जरूरत है।
आसमान में जो सितारे दीयों की तरह जगमगाते हैं, वे अकसर हमारे सामने अवसरों की तरह ही उपस्थित होते हैं। जरूरत उन्हें पहचानने की होती है। एक बार रास्ता मिल जाए, तो उस पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिए आवश्यक यह है कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, इसे जरूर जानें-पहचानें। जीवन में अवसर हर एक का दरवाजा खटखटाते हैं। उस आहट को सुनने की जरूरत ही तो है। कहीं ऐसा न हो कि अवसरों का लाभ उठाने के लिए, उसे आज से कल पर टालते रहें और वे इतने दूर निकल जाएं कि हम कभी उन्हें पकड़ ही न सकें।
कुछ साल पहले तक आदमी और औरतों को कुछ इस तरह से खानों में बांटा जाता था कि अरे यह तुम्हारा नहीं, आदमियों का काम है। तब लड़की की नौकरी का मतलब था बहुत सी नौकरियों के दरवाजे बंद होना। पायलट, पुलिस, सेना, व्यापार, पर्वतारोहण, इंजीनियर, वैज्ञानिक, आर्किटेक्ट-ये सब आदमी और आदमियों के लिए नौकरियों के अवसर। लेकिन आगे बढ़ती औरतों ने अपनी ताकत और लगन से अपनी हैसियत को न केवल साबित किया, अपने ऊपर लगे तमाम दूसरे बंधनों की दीवारों की तरह इन दीवारों को भी तोड़ दिया। आज बड़ी संख्या में औरतें इन सभी क्षेत्रों में न केवल काम करती हैं, बल्कि ऊंची से ऊंची मंजिल को छूती हैं।
भूतपूर्व आईपीएस ऑफिसर किरण बेदी के बारे में कहा जाता है कि जब वह आईपीएस में चुनी गईं, तो बहुत से लोगों को शक था कि क्या महिला होते हुए वह पुलिस की नौकरी आसानी से कर सकेंगी। उनसे सरकारी अधिकारियों ने बुलाकर कहा था कि वह पुलिस सेवा के मुकाबले कुछ और चुन लें, क्योंकि लड़की होने के नाते उन्हें दिक्कत हो सकती है। लेकिन वह अपने फैसले पर अडिग रहीं। वह जानती थीं कि औरत होने के नाते किसी भी नौकरी के दरवाजे उनके लिए बंद नहीं होने चाहिए। अगर वे बंद हैं, तो वह उन्हें खोलकर ही रहेंगी। वह एक सफल अफसर बनीं। उनके बाद, उनसे प्रेरणा लेकर न जाने कितनी महिलाओं ने पुलिस सेवा का चुनाव किया। सोचिए, अगर ऐसा न होता, तो पुलिस की नौकरी से महिलाएं शायद आज तक दूर ही रहतीं।
स्त्रियों को यदि अपने सपनों को पूरा करना है, तो उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों, दोनों को अच्छी तरह से जानना चाहिए। जिस दफ्तर में वे काम करती हैं, वहां उनके लिए क्या सुविधाएं हैं, वेतनमान और भत्ते क्या हैं, छुट्टियां कितनी हैं, मातृत्व अवकाश और वर्क फ्रॉम होम की सुविधा कितनी है आदि की जानकारी रखें और हक से इन सुविधाओं का उपयोग भी करें।