नई दिल्ली (राज्य ब्यूरो)। संगम विहार निवासी धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन मरकर भी वह चार लोगों को जिंदगी दे गया। एम्स ट्रॉमा सेंटर में ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद परिवार ने उसके अंगों को दान कर दिया। वैसे तो दान में मिले अंगों को पांच लोगों में प्रत्यारोपित किया गया। लेकिन लिवर प्रत्यारोपण के बाद एक डेढ़ वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। फिर भी उसके अंगों से चार लोगों को नया जीवन मिला है।
धर्मेद्र दूध का कारोबार करता था। गत वर्ष 29 दिसंबर को वह मोटरसाइकिल से मंडावली स्थित बहन के ससुराल जा रहा था। लेकिन गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन के नजदीक वह सड़क हादसे का शिकार हो गया। उसके सिर में गंभीर रूप से चोट लगी थी। एम्स ट्रॉमा सेंटर में न्यूरो सर्जन डॉ. हितेश गुर्जर ने उसकी सर्जरी की थी। मगर उसे बचाया नहीं जा सका। एक जनवरी को डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया। एम्स के डॉक्टरों व प्रत्यारोपण संयोजक राजीव मैखुरी ने उसके परिवार के लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित किया।
मृतक धर्मेद्र के बड़े भाई संतोष यादव ने कहा कि जब डॉक्टरों ने कहा कि यदि हम उसका अंगदान कर दें तो उससे कई लोगों को जीवन मिल सकता है। इस तरह वह मर कर भी जिंदा रह सकता है। तब हमने अंगदान का फैसला लिया। एम्स के अनुसार, परिवार के लोगों ने उसके हृदय, लिवर, दोनों किडनी व दोनों कॉर्निया को दान करने की स्वीकृति दी।
अंगदान में मिले हृदय को कोलकाता की रहने वाली 10 साल की बच्ची में प्रत्यारोपित किया गया। एम्स के डॉक्टरों के अनुसार, मरीज व डोनर की उम्र व वजन में अंतर होने के कारण हृदय प्रत्यारोपण मुश्किल था। लेकिन प्रत्यारोपण के बाद बच्ची की हालत ठीक है। इसके अलावा दोनों किडनी एम्स में ही दो लोगों को प्रत्यारोपित की गई। जबकि लिवर के दो हिस्से कर यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) में दो लोगों का प्रत्यारोपण किया गया। जिसमें एक डेढ़ साल का बच्चा शामिल था। हालांकि, प्रत्यारोपण के बाद बच्चे की मौत हो गई। दोनों कॉर्निया को सुरक्षित रख लिया गया है।
अंगदाता के शरीर से हृदय, लिवर व किडनी निकाले जाने के छह घंटे के अंदर प्रत्यारोपण जरूरी है। एम्स में 2012 में नौ ब्रेन डेड घोषित लोगों का अंगदान हुआ था। पिछले साल 2013 में ज्यादा सफलता नहीं मिली और सिर्फ दो ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजन ही अंगदान के लिए राजी हुए। इस साल एम्स प्रशासन ने अंगदान को बढ़ावा देने की तैयारी की है।दिल्ली में सैकड़ों लोग सड़क हादसे में मारे जाते हैं। लेकिन अंधविश्वास के चलते लोग अंगदान नहीं करते। हमें अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा, ताकि दूसरों की जिंदगी बचाई जा सके। भाई के नहीं होने का गम है, लेकिन इस बात की संतुष्टि है कि उससे दूसरों की जिंदगी बच गई। - मनोज यादव, अंगदाता का भाई