छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के तिल्दा ब्लॉक के छोटे किसान मणिराम ढीढी से जब एक चिट फंड कंपनी के एजेंट ने संपर्क किया और उनसे वादा किया वह उनकी रकम को पांच साल में दोगुना कर देगा तो उन्होंने इस बारे में दोबारा सोचा तक नहीं। उनके सपने बड़े थे। लेकिन करीब 35 वर्ष के मणिराम का सपना अब टूट चुका है। उन्होंने अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा चूनापत्थर खनन परियोजना को बेच दिया था और उससे मिली रकम को उन्होंने एक चिट फंड योजना में निवेश कर दिया। उनके हाथ जमीन तो गई ही और चिट फंड कंपनी भी रकम लेकर फरार हो गई। पिछले एक साल से कंपनी का कोई अता-पता नहीं है, जबकि पहले वह ब्लॉक मुख्यालय में एक छोटे से कार्यालय से परिचालन कर रही थी।
मणिराम के परिवार के पास गांव में पांच एकड़ जमीन थी, जिसे राज्य सरकार के खनन महानिदेशालय की ओर से चूनापत्थर के खनन के लिए चिह्निïत किया गया था। 40 लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता वाली 1,700 एकड़ खदान को अल्ट्राटेक सीमेंट को आवंटित किया गया है। यह परियोजना कंपनी के एकीकृत सीमेंट संयंत्र से जुड़ी हुई है। कंपनी सीधे तौर पर ग्रामीणों से जमीन की खरीद नहीं कर रही है।
उपसरपंच टोकनेंद्र गायकवाड़ ने कहा, 'इसके लिए जमीन की खरीद मध्यस्थ के जरिये की जा रही है।' जमीन चिह्नित करने के बाद मणिराम को 1.25 एकड़ जमीन की बिक्री करने पर 2012 में 11.60 लाख रुपये मिले थे। उन्होंने 8.50 लाख रुपये 'ओलिंपस' चिट फंड कंपनी में निवेश किया था, जिसने पांच साल में रकम को दोगुना करने का वादा किया था। मणिराम ने कहा, 'पिछले साल मैं तिल्दा में कंपनी कार्यालय गया और समय से पूर्व रकम निकालने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।' बाद में कंपनी ने अपना कार्यालय बंद कर लिया। इस चिटफंड कंपनी के पीडि़त मणिराम अकेले व्यक्ति नहीं हैं। मुर्रा गांव के लोगों ने करीब 3 करोड़ रुपये की रकम चिटफंड कंपनियों में निवेश किया है। ऐसी कंपनियां योजनाबद्घ तरीके से परिचालन शुरू करती हैं और ग्रामीणों द्वारा रकम जमा करने के बाद वे कारोबार समेट कर चंपत हो जाती हैं। ग्रामीण असहाय हैं और पुलिस में शिकायत करने से भी हिचकते हैं। एजेंट भी उनके अपने ही परिवारों से जुड़े हैं।
आईजी जी पी सिंह ने कहा, 'पुलिस चिटफंड कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है और कुछ निदेशकों को गिरफ्तार भी किया गया है।' उन्होंने कहा कि ग्रामीणों के शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस कार्रवाई करेगी। ग्रामीणों के बीच असमंजस है, क्योंकि उन्होंने जमीन तो गंवाई ही, पैसा भी हाथ से चला गया। वे अल्ट्राटेक की परियोजना में नौकरी के लिए भी पात्र नहीं हैं, क्योंकि कंपनी ने भूमि अधिग्रहण नियमों के तहत जमीन की खरीद नहीं की है। राज्य के राज्य सचिव के आर पिसडा ने कहा, 'सरकार द्वारा जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया है, ऐसे में प्रभावित लोगों के लिए राहत एवं पुनर्वास नीति लागू नहीं होगी।' यह दो पक्षों के बीच का मामला है और सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अधिग्रहीत की गई 689.048 हेक्टेयर जमीन में से केवल 30.59 हेक्टेयर जमीन सरकार की है।"
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