चिट फंड एक्ट 1982 के मुताबिक चिट फंड स्किम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का ग्रुप एक साथ समझौता करे। इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाती है। और तय वक्त पर उसकी नीलामी की जाती है। जो भी फायदा होता है उसे बाकी लोगों में बांट दिया जाता है। इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसे लौटाने भी होते हैं। नियम के मुताबिक ये स्कीम किसी संस्था या फिर व्यक्ति के जरिए आपसी संबंधियों या फिर दोस्तों के बीच चलाया जा सकता है।
लेकिन आम तौर पर ऐसा होता नहीं है। ये चिट फंड स्कीम कब पॉन्जी स्कीम में बदल जाती है कोई नहीं जानता है। आम तौर पर चिट फंड कंपनियां इस काम को मल्टीलेवल मार्केटिंग में तब्दील कर देती हैं। मल्टीलेवल मार्केटिंग यानि अगर आप अपने पैसे जमा करते हैं साथ ही अपने साथ और लोगों को भी पैसे जमा करने के लिए लाते हैं तो मोटे मुनाफे का लालच।
ऐसा ही बाजार से पैसा बटोरकर भागने वाली चिट फंड कंपनियां भी करती हैं। वो लोगों से उनकी जमा पूंजी जमा करवाती हैं। साथ ही और लोगों को भी लाने के लिए कहती हैं।
बाजार में फैले उनके एजेंट साल, महीने या फिर दिनों में जमा पैसे पर दोगुने या तिगुने मुनाफे का लालच देते हैं। शारदा ग्रुप ने ही महज 4 सालों में पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड, उड़ीसा और नॉर्थ ईस्ट राज्यों में भी अपने 300 ऑफिस खोल लिए। यही नहीं जानकारों की माने तो बाजार में उसके दो लाख एजेंट हैं।
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