बक्सर। कहावत है, 'अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत'। चिटफंड कंपनियों में रोजाना अपनी गाढ़ी कमाई जमा करने वाले निवेशक अब इसी कहावत की तर्ज पर अपना सिर पीट रहे हैं। चिटफंड कंपनियां मोटे ब्याज का दिलासा देकर छोटे-मोटे दुकानदारों और निवेशकों से पैसा जमा करातीं हैं और दो-चार साल में मोटी रकम वसूल चंपत हो जाती हैं। जिले में अबतक एक दर्जन कथित बैंक निवेशकों से पचास करोड़ रुपये से ज्यादा राशि हड़प गायब हो चुकी हैं। बावजूद, सिलसिला थमा नहीं है और नाम बदल कर आज भी चिटफंड फर्जीबाड़ा हो रहा है और ऐसी योजनाएं चल रही हैं।
पिछले दिनों पीएसीएल व विश्वामित्र जैसी कंपनी पर हुई कार्रवाई की सूचना मिलने के बाद इसमें एजेंट के तौर पर काम कर रहे कर्मियों की भी मुश्किलें बढ़ गयी थी। जब ऐसा होता है कंपनी में पैसा जमा करने वाले उन्हें ही पकड़ते हैं। एजेंट को भी इस परिस्थिति में कुछ कहते नहीं बनता। ऐसी ही कंपनी में काम कर आज अपना सबकुछ गंवाने वाले एक एजेंट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अपनी बेरोजगारी दूर करने के लिए कंपनी से जुड़ा था, अब उससे होने वाली आमदनी भी गयी और जिनके पैसे उसमें जमा कराये थे उन लोगों से आज भी भागा चल रहा है। पीएसीएल से जुड़े सभी एजेंट आज भी इन्हीं मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
फर्जीबाड़े की फेहरिश्त में दर्जनों कंपनियां
निवेशकों को झूठ-सच समझा उनके पैसे डुबाने वालों में केवल पीएसीएल या विश्वामित्र ही नहीं है। पहले भी जेवीजी फायनांस, हेलियस व गोल्डन फारेस्ट आदि दर्जनों कंपनियों में निवेशक पैसा लगा करोड़ों रुपये गंवा चुके हैं। पीएसीएल में बड़ी रकम निवेश करने वाले दीपक कुमार गोंड, सत्येंद्र कुमार व मदन जी यादव ने बताया कि कंपनियां अपने नेटवर्क के माध्यम से ऐसा सब्जबाग दिखाती हैं कि भोले-भाले लोग इसमें फंस जाते हैं। इनके टार्गेट वर्ग में छोटे-मोटे व्यवसायी व मध्यम एवं छोटा तबका होता है, जिन्हें इन कंपनियों में निवेश आसान लगता है। आसानी से एजेंट आकर पैसा ले जाते हैं और फार्म पर हस्ताक्षर करा ले जाते हैं, बैंक या पोस्ट आफिस जाने का कोई झंझट नहीं। इसी वजह से इन कंपनियों को आसानी से निवेशक मिल जाते हैं। निवेशकों का गुस्सा इस बात पर भी है कि जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वाली कंपनियों पर शुरू में ही रोक क्यों नहीं लगायी जाती। आखिर, निवेशकों के करोड़ों रुपये डकार लेने के बाद ही क्यों सरकारी एजेंसियों की आंखें खुलती है।
ईंसर्टनिवेश के पैसे से भुगतान
बक्सर : चिटफंड कंपनियां अपने संचालन के तौर-तरीके की वजह से हमेशा तलवार की ढाल पर रहती हैं। दरअसल, कंपनियां अपने ग्राहकों को परिपक्वता राशि का भुगतान निवेश के पैसे से ही करतीं हैं। समय के साथ निवेश बढ़ता जाता है, जिससे वर्तमान कलेक्शन से पुराने निवेश का भुगतान करने में कोई दिक्कत नहीं होती। समस्या तब शुरू होती है, जब निवेश और भुगतान का संतुलन गड़बड़ाने लगता है। किसी कारणवश कलेक्शन कम हो गया तो कंपनी जमीन पर आ जाती है और निवेशकों के भुगतान में टाल-मटोल शुरू हो जाता है। क्योंकि इस परिस्थिति में कंपनी का मुख्यालय स्थानीय शाखा को पैसा नहीं भेजता है।
इंसर्ट..
निवेशकों को करते हैं गुमराह
बक्सर : चिट फंड कंपनियां निवेशकों को भी गुमराह करती हैं और उन्हें सही बातों की जानकारी नहीं देतीं। पिछले साल नवंबर में जब पीएसीएल फायनेंस लिमिटेड यहां से करोड़ों बटोर चंपत हुई तो जांच में पता चला कि पिछले साल मार्च से ही बैंकों में उसका खाता सील था। बावजूद, कंपनी जमाकर्ताओं को अंधेरे में रख उनसे पैसे वसूलती रही। कंपनी में यहां के निवेशकों ने लगभग पन्द्रह करोड़ रुपये जमा किये, लेकिन आज पंजाब नैशनल बैंक में कंपनी की तीन खातों में कुल मिलाकर पन्द्रह लाख रुपये भी नहीं जमा है।
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