Most Viewed MLM News
1072 GRAMIN DAK SEVAK (GDS) Job 2017 ODISHA POSTAL CIRCLE RECRUITMENT
1072 GRAMIN DAK SEVAK (GD...
NURSE Government Jobs 2017 GOVERNMENT OF BIHAR RECRUITMENT
NURSE Government Jobs 201...
100 TEACHER Government Jobs 2017 KMC RECRUITMENT
100 TEACHER Government Jo...
Industry Experts Suggestions On How To Improve Your Multi Level Marketing
Industry Experts Suggesti...
Top 7 Best MLM Network Marketing Companies 2018 in India
Top 7 Best MLM Network Ma...
1065 ASSISTANT ENGINEER Government Jobs Post 2017 BPSC RECRUITMENT
1065 ASSISTANT ENGINEER G...
606 STATION CONTROLLER and other Job 2017 GUJARAT METRO RAIL RECRUITMENT
606 STATION CONTROLLER an...
TRAINEE ENGINEER and other vacancy LATEST JOBS IN CVPP RECRUITMENT 2018
TRAINEE ENGINEER and othe...
Government Says India Seeks To Block Most Cryptocurrencies in New Bill
Government Says India See...
PEON Government Recruitments 2017 ECOURTS JOBS NOTIFICATION
PEON Government Recruitme...

Chit fund fraud checking planted months, companies had until then escaped

Chit fund fraud checking planted months, companies had until then escaped

रायपुर.पुलिस ने राजधानी में एक-एक करके पिछले करीब 15 महीने में 22 चिटफंड कंपनियों के खिलाफ रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन जहां भी पुलिस जांच के लिए पहुंच रही है, कंपनी के दफ्तरों में ताला मिल रहा है। यह हालात चिटफंड कंपनियों के खिलाफ अपनाई जा रही अजीब प्रक्रिया के कारण बन गए हैं।


 


लगभग सभी कंपनियों के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायतें एक से दो साल पुरानी हैं। पुलिस ने शिकायत के बाद जांच में इतना वक्त लगा दिया कि जब तक एफआईआर होती, कंपनियां ताला लगाकर भाग चुकी हैं।


 


इन कंपनियों के खिलाफ राजधानी तथा आसपास के लोगों से तकरीबन 4 सौ करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की शिकायतें हैं। प्रक्रिया की इस खामी का नतीजा ये हुआ है कि न तो धोखेबाजों का पता-ठिकाना पुलिस को मिल पा रहा है, और न ही धोखा खा चुके लोगों की रकम वापसी की संभावनाएं बन रही हैं।


 


भास्कर की पड़ताल में पता चला कि हाल में जिन कंपनियों के खिलाफ केस बने, ज्यादातर एक से तीन साल पहले ही भाग चुकी हैं।


 


पुलिस अफसरों ने माना कि एफआईआर के बाद जब इन कंपनियों के दफ्तर में पहुंचे तो ताला लगा मिला। भीतर गए तो दस्तावेज ही नहीं थे। कंपनी के संचालकों और एजेंटों तक का पता-ठिकाना नहीं मिल पा रहा है।


 


दरअसल प्रशासन ने जांच के बाद पिछले साल पुलिस को 27 कंपनियों की सूची देकर जांच और कार्रवाई के लिए कहा था। जांच के बाद पुलिस ने फरवरी तक 22 कंपनियों के खिलाफ चारसौबीसी दर्ज की।


 


इसके बाद जांच के लिए पुलिस संबंधित कंपनियों के दफ्तर पहुंची तो वहां ताले लगे मिले। अब तक ताले खोले नहीं जा सके हैं। तीन कंपनियां खुली मिलीं, लेकिन वहां कंप्यूटरों के अलावा पुलिस को कुछ नहीं मिला।


 


इनमें चार कंपनियों का दफ्तर तो राजेन्द्र नगर के प्रोग्रेसिव प्वाइंट में है। बाकी कंपनियों के दफ्तर महावीर नगर, राजेन्द्र नगर और अमलीडीह में फैले हैं।


 


आधा दर्जन और शिकायतें


 


शहर के कुछ थानों में चिटफंड कंपनियों यालकों ग्रुप आफ कंपनीज, संजीवनी फाइनेंस, जीएन गोल्ड, ग्रीन वेली तथा बीएन गोल्ड वगैरह के खिलाफ शिकायतें हैं।


 


भास्कर से इन थानों के इंस्पेक्टरों ने कहा कि शिकायतों की जांच कर रहे हैं। दस्तावेज भी जुटा रहे हैं। धोखेबाजी साबित होने के बाद ही एफआईआर होगी।


 


आठ साल में 68 केस


 


जिले में पिछले 8 साल में ऐसी 68 कंपनियों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं। सबसे ज्यादा रिपोर्ट पिछले सवा साल में हुईं। पुलिस का दावा है कि ऐसी कंपनियों के 90% डायरेक्टर गिरफ्तार किए जा चुके हैं।


 


हकीकत ये है कि ज्यादातर प्रमुख कंपनियों जैसे एचबीएन, ग्रीन रे और माइक्रो फाइनेंस सहित कई कंपनी के डायरेक्टर अब भी फरार हैं।


 


एक और कंपनी पर केस


 


डीडी नगर पुलिस ने 8 माह पहले हुई शिकायत के बाद शुक्रवार को एनआईसीएल कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी की एफआईआर की है। कंपनी पर राजधानी और उसके आसपास लोगों से 20 लाख से ज्यादा की ठगने के आरोप हैं।


 


इसी तरह मौदहापारा पुलिस ने शिकायत के दो साल बाद पल्स ग्रीन कंपनी तथा यूवर लाइट के खिलाफ केस दर्ज किया था।


 


देरी नहीं होगी : एसपी


 


चिटफंड कंपनियों की शिकायतों की तेजी से जांच करके एफआईआर कर रहे हैं। इसी साल दो दर्जन कंपनियों के खिलाफ एफआईआर हुई है। इस मामले में अब देरी नहीं होगी।


 


एन मीणा, एसपी रायपुर


 


न शिकायत मिली न खुद जांच की अफसरों ने


 


चिटफंड कंपनियों की धोखेबाजी रोकने के लिए राज्य सरकार ने नया कानून बनाया, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं होने के कारण छह महीने में प्रशासन को इसकी एक भी शिकायत नहीं मिली।


 


यही नहीं, अफसरों ने भी सूचनाओं के आधार पर खुद किसी कंपनी की जांच ही नहीं की। जबकि नए अधिनियम में कलेक्टर को अधिकार है कि वे शक पर किसी भी कंपनी की जांच करवा सकते हैं।


 


प्रशासन की इसी खामोशी की वजह से राजधानी में अब भी कई जगह चिटफंड कंपनियां बेखौफ चल रही हैं। शहर के अलावा आउटर में भी एजेंट लोगों से पैसे जमा करवा रहे हैं। जानकारों का तो यह भी दावा है कि नया और सख्त कानून बनने के बाद भी कुछ कंपनियां घने शहरी इलाकों में भी अपना कारोबार चला रही हैं।


 


शिकायतें ट्रेजरी में


 


चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कोई भी जिला कोषालय (ट्रेजरी) में शिकायत कर सकता है। लेकिन ट्रेजरी के अफसरों ने इस दफ्तर के अंदर या बाहर ऐसा कोई बोर्ड तक नहीं लगाया है जिससे पता चले कि वहां शिकायतें की जा सकती हैं।


 


जो लोग शिकायत करने कलेक्टोरेट पहुंचते भी हैं, वे इसी वजह से भटककर लौट जाते हैं।


 



  • 0 like
  • 0 Dislike
  • 0
  • Share
  • 926
  • Favorite
  • 07 March, 2016
Previous Next
App
Install