राज्य में सेवी के कार्यालय के शुभारंभ मौके पर मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने चिटफंड कंपनियों पर नकेल कसने के लिए जिस कड़े कानून को लागू करने की बात कही थी वह विधानसभा में निवेशकों के हितों के सुरक्षा से संबंधित संशोधन विधेयक पारित होने के साथ पूरी हो गई। जल्द ही यह विधेयक कानून का रुप ले लेगा और कलेक्टर इस तरह की किसी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई कर सकेंगे। अधिनियम में निवेशकों की अमानत में खयानत के मामले में पहले भी कार्रवाई का प्रावधान था, जिसे अब और कड़ा बना दिया गया है। अब लोगों की रकम डकारने वाली कंपनी के अधिकारी-कर्मचारी सीधे जेल जाएंगे क्योंकि इस अधिनियम की धाराओं को गैरजमानती बना दिया गया है। जिला दंडाधिकारी को ऐसी कंपनियों की संपत्ति कुर्क करने का भी अधिकार दिया गया है। जिला दंडाधिकारी निवेशकों की राशि लौटाने के लिए कंपनी की संपत्ति नीलाम भी कर सकते हैं। सजा और जुर्माने के प्रावधान को भी कड़ा किया गया है। अब दस साल की जेल और 15 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। किसी कंपनी का अपना कारोबार शुरू करने से पहले कंपनी के बारे में पूरा ब्यौरा जिला दंडाधिकारी को उपलब्ध कराना होगा। पहले ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी। कंपनियां चुपचाप अपना काम करती थीं और जब तक किसी गड़बड़ी का पता चलता था उसके कार्यकर्ता चंपत हो जाते थे। अब कंपनियों के ब्यौरे के आधार पर उस कंपनी के लिए काम करने वाले हर व्यक्ति का अता-पता जिला दंडाधिकारी के पास होगा। ऐसी आशा की जा सकती है कि कोई कंपनी लोगों के पसीने की कमाई पर डाका नहीं डाल सकेगी। जिला दंडाधिकारी को अब पहले से खबर होगी कि जिले में कौन-कौन सी चिटफंड कंपनियां कारोबार कर रही हैं और कौन तथा कहां के लोग उसके लिए काम कर रहे हैं। यदि कोई शिकायत आती है तो वे संबंधित व्यक्ति को सीधे तलब कर सकेंगे। चिटफंड कंपनियों ने गांवों में भी अपना सघन नेटवर्क तैयार कर लिया है। भोले-भाले ग्रामीण झांसे में आकर अपनी रकम गंवा रहे हैं। सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। इस कानून को कड़ा बनाने की जरुरत इसलिए पड़़ी क्योंकि चिटफंड कंपनियों के नाम पर ठगी और धोखाधड़ी की शिकायतें बढ़ती ही जा रही हैं। कंपनियों के लोग निवेश से होने वाले फायदे को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। कई लोग उनके झांसे में आकर रकम कंपनी के लोगों को दे देते हैं। प्राय: लोगों को इस कंपनियों का पता-ठिकाना तक ज्ञात नहीं होता। कंपनियों ने इसका बड़ा ही नायाब तरीका ढूंढा है जिससे लोगों को उन पर शक न हो। वे अपने कारोबार में स्थानीय लोगों को लगाते हैं। ये लोग अपने परिचय के दायरे में आने वाले लोगों को सबसे पहले ग्राहक बनाते हैं। अब इस कानून में संशोधन होने के बाद ऐसे स्थानीय लोगों पर हमेशा कार्रवाई की तलवार लटकती रहेगी। अगर ऐसे मामलों में बड़ी मछलियां निकल जाती हैं और कार्रवाई के लिए स्थानीय निवासी ही रह जाते हैं तो यह कानून उन पर भारी पड़ सकता है। इस कानून का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना भी जरुरी है ताकि स्थानीय लोग फर्जी कंपनियों के बहकावे में आकर जाने-अनजाने आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने से बच सकें।
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