पहले तो यह कहा गया था कि विदेशों में भारत का इतना काला धन जमा है कि इससे हर कोई एक कार खरीद सकता है। जब इस काले धन को वापस लाने वाली मोदी सरकार की तीन महीने की योजना खत्म हुई, तो उससे हर व्यक्ति के लिए एक आइसक्रीम खरीदने लायक पैसा ही हाथ आया।
हर नागरिक के हिस्से महज 20 रुपये
विदेश से काला धन लाने की तीन महीने की योजना समाप्त होने पर भारत सिर्फ 2,500 करोड़ रुपये ही वापस ला पाया। इसे अगर बांटा जाए तो हर नागरिक को सिर्फ 20 रुपये पर संतोष करना पड़ेगा। यह 20 लाख रुपये प्रति व्यक्ति को रकम के उसे दावे से बेहद कम है, जो नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान संभावना जताते हुए किया था।
देश के कुल राजस्व का सिर्फ 0.2 फीसदी
जुलाई से सितंबर के बीच सरकार को प्राप्त रकम पिछले साल के भारत के कुल राजस्व के 0.2 प्रतिशत के बराबर है। इतना ही नहीं, यह रकम 1997 के कर क्षमा कार्यक्रम में प्राप्त रकम के मुकाबले चार गुणा कम है।
क्या कहा था मोदी ने
मोदी ने जनवरी 2014 में आयोजित एक चुनावी रैली में कहा था कि यदि हम काला धन लाते हैं तो भारत के हर गरीब व्यक्ति को 15-20 लाख रुपये मिलेंगे। एक साल बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि मोदी का वह बयान महज एक जुमला था।
क्या कहते हैं जानकार
1- अर्नस्ट एंड यंग के राष्ट्रीय कर लीडर सुधीर कपाडिया का कहना है कि मोदी इसलिए ज्यादा काला धन वापस नहीं ला पाए, क्योंकि उन्होंने समस्या को राजनीतिक नजरिये से हल करने की कोशिश की। उन्होंने विदेश में संपत्ति छिपाने के एवज में कड़ी पेनाल्टी का प्रावधान किया। इसके उलट उन्हें भारतीय एजेंसियों से मौजूदा कानूनों को बेहतर ढंग से लागू करवाने की कोशिश करनी चाहिए थी।
2- एक अन्य जानकार राकेश नंगिया के मुताबिक वह इस साल की कर संग्रह की घोषणाओं पर नए कानून का बहुत असर नहीं देखते, लेकिन उनका पूरा विश्वास है कि काला धन संबंधी अधिनियम भविष्य में इस प्रवृत्ति पर प्रभावशाली ढंग से अंकुश लगाएगा।
क्यों सफल हुई थी 1997 की योजना
मौजूदा योजना की नाकामी के कई कारण गिनाए जाते हैं। इनमें उच्च कर दर भी शामिल है। 1997 की योजना की सफलता का कारण 30% कर दर होना था। यह सामान्य कर दर से बहुत अलग नहीं थी।