Most Viewed MLM News
1072 GRAMIN DAK SEVAK (GDS) Job 2017 ODISHA POSTAL CIRCLE RECRUITMENT
1072 GRAMIN DAK SEVAK (GD...
NURSE Government Jobs 2017 GOVERNMENT OF BIHAR RECRUITMENT
NURSE Government Jobs 201...
100 TEACHER Government Jobs 2017 KMC RECRUITMENT
100 TEACHER Government Jo...
Industry Experts Suggestions On How To Improve Your Multi Level Marketing
Industry Experts Suggesti...
Top 7 Best MLM Network Marketing Companies 2018 in India
Top 7 Best MLM Network Ma...
1065 ASSISTANT ENGINEER Government Jobs Post 2017 BPSC RECRUITMENT
1065 ASSISTANT ENGINEER G...
606 STATION CONTROLLER and other Job 2017 GUJARAT METRO RAIL RECRUITMENT
606 STATION CONTROLLER an...
TRAINEE ENGINEER and other vacancy LATEST JOBS IN CVPP RECRUITMENT 2018
TRAINEE ENGINEER and othe...
Government Says India Seeks To Block Most Cryptocurrencies in New Bill
Government Says India See...
PEON Government Recruitments 2017 ECOURTS JOBS NOTIFICATION
PEON Government Recruitme...

Atal Bihari Vajpayee receives Bharat Ratna Award

Atal Bihari Vajpayee receives Bharat Ratna Award


सवाल सीधा-सा था, इतनी कठिनाइयों में भी आप शांत स्वर कैसे रखते हैं? आपकी आस्था का आधार? अटल जी अपनी चिर-परिचित शैली में मुझे देखते रहे और फिर हौले से मुस्कराते हुए बोले, आस्था? मेरी आस्था भारत है, और कुछ नहीं। मैं अवाक रह गया। इतनी बड़ी बात कितनी सहजता से कह गए अटल जी।



अटल जी की तुलना सिर्फ अटल जी से ही की जा सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और कवि ऐसे कि हृदय में सागर हिलोरे लेने लगे, वक्ता ऐसे कि मन के तार झंकृत हो उठे, धमनियों में रक्त गर्म हो चले, तो कभी हंसते-हंसते आंख में पानी आ जाए। पंडित नेहरू के बाद शायद वही प्रधानमंत्री हुए, जो अपने हाथ से दर्जनों पत्र लिखने में आनंद महसूस करते थे और प्रायः अंतिम पंक्ति में लिखते थे, 'आपका स्नेह बना रहे, यही कामना है।'



अटल जी को भारत रत्न मिला, तो यह कहना ज्यादा प्रासंगिक लगता है कि 'भारत रत्न' को भारत रत्न मिला। एक अजातशत्रु और सर्वसमावेशी व्यक्तित्व वाले अटल जी को भारत रत्न मिलने में हुआ विलंब भी भारतीय राजनीति के विद्रूप का ही एक आयाम है। फिर भी इस एक घोषणा ने आम जनमानस में जो उल्लास पैदा किया, वही इस बात द्योतक है कि यह अलंकरण सरकार की ओर से कम और सवा अरब लोगों की ओर से ज्यादा मिला। अटल जी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनन्य सहयोगियों में से थे, और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बहुत प्रिय। राष्ट्रधर्म जैसी पत्रिकाओं को उनकी कलम की धार मिली। हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू, मेरा परिचय और गगन में लहराता है भगवा हमारा कविताएं तभी लिखी गईं। बाद के वर्षों में उन्होंने हिरोशिमा और मनाली मत जाइयो जैसी रचनाएं भी कीं।



अटल जी की राजनीतिक स्वीकार्यता वस्तुतः स्वीकार्यता का मानक बन गई। गठबंधन धर्म और राजधर्म जैसे शब्द उन्होंने राजनीति में उदारता एवं विश्वसनीयता को कायम करते हुए गढ़े। उनकी संसदीय शैली अपने आप में एक राजनीतिक विद्यालय है। आक्रामकता में भी शालीनता, प्रहारों की तीव्रता में भी संयम तथा हास्य का जीवंत पुट, जो आज कमोबेेश संसद से गायब है, उनकी असाधारण शैली के आयाम हैं। वही ऐसे राजपुरुष हैं, जो यदि पंडित नेहरू से भी प्रशंसा ले सके, तो इंदिरा जी की भी उन्होंने दिल खोलकर तारीफ की। वह आपातकाल में जेल गए, तानाशाही का जुल्म झेला, पर बाद में जब सत्ता में आए, तो इंदिरा गांधी के प्रति भाषा में कभी कटुता नहीं दिखाई। मारुति कार की शुरुआत के समय संसद में हुए विवाद के अवसर पर बोला गया उनका वाक्य 'बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है' काफी कुछ कह जाता है। इसी तरह, शायद कच्छ सत्याग्रह की बात है। वह आंदोलन में जेल गए और फिर रिहा हुए। पत्रकारों ने पूछा, आप तो आंदोलन के लिए गए थे, रिहा कैसे हो गए? अटल जी ने अपनी शैली में जवाब दिया, 'कैद मांगी थी, रिहाई तो नहीं मांगी थी', और खिलखिलाकर हंस पड़े। यह एक प्रसिद्ध फिल्मी गीत की पंक्ति थी और इन शब्दों के साथ ही बात खत्म हो गई।



पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और गांधी चिंतन में उनकी गहरी श्रद्धा है, इसलिए भाजपा बनाने के बाद उन्होंने गांधीवादी समाजवाद को अपनाया। अपने घनघोर विपक्षी पर भी घनघोर व्यक्तिगत प्रहार के वह कभी पक्षधर नहीं रहे। हम पांचजन्य में सोनिया जी के नेतृत्व में कांग्रेस की आलोचना करते हुए अक्सर तीखी आलोचना करते थे। ऐसे ही एक अंक को देखकर उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से ही फोन किया और कहा, 'विजय जी, नीतियों और कार्यक्रमों पर चोट करिए, व्यक्तिगत बातों को आक्षेप से बाहर रखिए।'



लाहौर बस यात्रा के समय अटल जी बहुत आशान्वित थे। वह हर कीमत पर, अतिरिक्त मील चलकर भी पाकिस्तान से मैत्री चाहते रहे। लेकिन परवेज मुशर्रफ के धोखे ने उन्हें बहुत पीड़ा दी। कारगिल के शहीदों के सम्मान के प्रति वह बहुत संवेदनशील रहे और उनके शासन में ही पहली बार भारत के शहीद सैनिकों को भावभीनी विदाई दी गई।



यह उनके सौम्य व्यक्तित्व की चट्टानी दृढ़ता ही थी कि भले ही कोई कुछ भी कहता रहे, उन्होंने जो तय कर लिया, उस लीक से क्षणांश भी कभी नहीं हटे। 'गर्व से कहो हम हिंदू' की जगह 'गर्व से कहो हम भारतीय हैं' कहने का साहस उन्होंने ही दिखाया। पांचजन्य के एक साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिक्रिया में जन्मा जागरण स्वस्थ नहीं है। उनके शब्द थे, 'यदि हिंदुत्व के प्रति गर्व प्रतिक्रिया में उत्पन्न हुआ है, तो यह भी कोई बहुत स्वस्थ स्थिति नहीं है। यदि लोग इस प्रतिक्रिया में हिंदू हो रहे हैं, तो दूसरे लोग प्रतिक्रिया में और भी कट्टर होंगे। भारत में हिंदू बहुसंख्या में हैं, इसलिए हमारा दायित्व भी अधिक है।' वाकई रामजन्मभूमि आंदोलन पर उनका अपना ही मत रहा। उससे वह कभी डिगे नहीं। एक अत्यंत वरिष्ठ संघ अधिकारी के सार्वजनिक साक्षात्कार से वह पीड़ित तो बहुत हुए। वैसे भी उन दिनों स्वदेशी के आंदोलनकारी काफी कटु भी हो गए थे। मगर अटल जी ने सारी पीड़ा झेल ली और आलोचना में कुछ नहीं कहा।



सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति, मोबाइल को सस्ता बनाकर घर-घर पहुंचाना, देश के ओर-छोर स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्गों से जोड़ना और हथियारों के मामले में देश को अधिक सैन्य सक्षम बनाना अटल जी की वीरता और विकास केंद्रित नीतियों का ही शानदार परिचय है। वह अंतिम व्यक्ति की गरीबी को दूर करने के लिए हमेशा चिंतित रहे। वह सामाजिक समानता और सौहार्द को लेकर भी काफी संजीदा रहे। एक बार हमने धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे अंक निकाला, जिसके मुखपृष्ठ पर काशी के डोमराजा के साथ संतों, शंकराचार्य और विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल का भोजन करते हुए चित्र छपा। अटल जी यह देखकर प्रसन्न हुए और कहा, ऐसी बातों का जितना अधिक प्रचार-प्रसार हो, उतना अच्छा है। ऐसे कार्यक्रम और होने चाहिए, पर मन से होने चाहिए, फोटो-वोटो के लिए नहीं।



अटल जी पांचजन्य के प्रथम संपादक तो थे ही, प्रथम पाठक भी रहे हैं। प्रधानमंत्री रहते हुए हमारे अंकों पर उनकी प्रतिक्रियाएं मिलती थीं। एक बार स्वदेशी पर केंद्रित अंक के आवरण पर भारत माता का द्रोपदी के चीरहरण जैसा चित्र देखकर वह क्रुद्ध हुए, और कहा, हमारे जीते जी ऐसा दृश्यांकन। संयम और शालीनता के बिना पत्रकारिता नहीं हो सकती। वास्तव में, अटल जी को भारत रत्न नहीं मिला, बल्कि भारत के रत्न को भारत रत्न मिला। वह दीर्घायु हों, यह कामना है।



- लेखक भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं


  • 0 like
  • 0 Dislike
  • 0
  • Share
  • 1311
  • Favorite
  • 25 December, 2014
Previous Next
App
Install