मथुरा: रीयल एस्टेट से सफर शुरू करने वाली कल्पतरु कंपनी तेज कदम बढ़ाते हुए ग्रुप ऑफ कंपनीज बन गई। चिटफंड, मेगा मार्ट, एग्रीकल्चर और मीडिया सहयोगी कंपनियों के जरिए बाजार में रुतबा बढ़ाया और निवेशक रीझते गए। निवेशकों का सैकड़ों करोड़ जमा करने वाली कंपनी को जब पैसा लौटाने का वक्त आया तो हालत बिगड़ गई। एक साल पहले से ग्रुप की कंपनियां बंद होने लगीं। मगर निवेशकों को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। हरियाणा के एजेंट की आत्महत्या के बाद जब खेल खुला। मगर अब तक अधिकारी से लेकर प्रमुख तक गायब हो चुके थे। सैकड़ों करोड़ डूबने की आशंका में निवेशक माथा पीट रहे हैं।
कल्पतरु कंपनी की नींव लगभग दो दशक पहले एक पुराने स्कूटर पर चलने वाले जयकृष्ण राणा ने रखी थी। जानकारों की मानें तो राणा ने रीयल एस्टेट में कदम रखा। उन दिनों यह धंधा तेजी पर था। इसलिए कामयाबी जल्द नजर आने लगी और राणा ने कंपनियों का कुनबा भी बढ़ा लिया। कंपनी ने रियल एस्टेट के साथ ही चिटफंड, मेगा मार्ट, एग्रीकल्चर आदि क्षेत्रों में पैर पसारते हुए करीब दो दर्जन कंपनियां बना लीं। सूत्रों के अनुसार, कंपनी ने एक फंडा अपनाया। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उप्र आदि राज्यों में मुख्य रूप से तो चिटफंड कंपनी के कार्यालय खोलकर लुभावने वादों के साथ पब्लिक का पैसा जुटाना शुरू किया।
पब्लिक का पैसा आते ही इन शहरों में जमीन की बिग डील शुरू की। जितनी जमीन खरीदी जाती, उससे ज्यादा दिखाकर निवेशकों को लुभाया जाता था।
टर्नओवर बढ़ाने की होड़ में फंसते गए पैर
जानकारों की मानें तो जमीनों के बड़े सौदों में एक उस्तादी भी की। कंपनी का टर्न ओवर बढ़ाने के लिए सलाहकारों ने ऐसी जमीनों की रजिस्ट्री सर्किल रेट से कहीं ज्यादा कराई। सिर्फ इसलिए कि कंपनी का टर्नओवर ज्यादा दिखाकर दूसरी कंपनियों का उपयोग कर लिया जाए। ऐसे में स्टाम्प ड्यूटी भी ज्यादा अदा की गई। यही चालाकी अब कंपनी के लिए मुसीबत बन गई है। इन शहरों में जमीनों के दाम अभी भी सर्किल रेट के बराबर नहीं आ पाए हैं।
पेशगी देकर किसानों से जमीन करा ली अपने नाम
कंपनी के जानकारों की मानें तो जमीन की खरीद में किसानों को भी लूटा गया। चुरमुरा और इसके आसपास के गांवों की तमाम जमीन कंपनी के नाम ही है। किसानों से पेशगी देकर ये जमीन कंपनी ने अपने नाम करा ली। मगर किसानों को उनकी जमीन का पूरा पैसा नहीं मिल पाया। किसान इस उम्मीद में मुंह नहीं खोल रहे हैं कि कभी तो पैसा मिल ही जाएगा।
टैक्स बचाने के फेर में फंसी लखनऊ की बिल्डिंग
लखनऊ में अखबार के लिए हजरतगंज में चार मंजिला भवन खरीदा था। इसकी कीमत तो पूरी अदा कर दी गई, मगर रजिस्ट्री सिर्फ दो मंजिल की ही कराई गई। ऐसे में बाकी बची दोनों मंजिलों से मालिकाना हक भी कंपनी के पास नहीं रहा। कंपनी की इसी चालाकी के शिकारों की संख्या हजारों में है।
निवेशकों की नींद उड़ी
कंपनी की चिटफंड स्कीम में अपनी जिंदगी भर की कमाई लगाने वाले और लगवाने वालों की नींद उड़ी हुई है। कंपनी सूत्रों ने बताया कि स्कीम के लगभग 80 फीसदी निवेश मैच्योरिटी पर हैं। इन पर करीब दो सौ करोड़ से ज्यादा का भुगतान होना है। कंपनी इसके भुगतान की स्थिति में नहीं हैं। कंपनी मुख्यालय पर आ रहे लोग परेशान हैं।
कानून का सख्त शिकंजा
कंपनी के मुखिया जे के राणा पर कानून का सख्त शिकंजा बताया जा रहा है। सेबी और अन्य केंद्रीय कार्यालयों में कंपनी की शिकायत हो चुकी है। जानकार बताते हैं कि करीब छह महीने अचानक हुई इस तरह की कार्रवाई ने कंपनी मुखिया के देश से भाग जाने के रास्ते बंद कर दिए है। करीबी लोगों के अनुसार, कंपनी मुखिया आगरा या दिल्ली में कहीं हो सकता है। कंपनी के कर्मचारियों के जीपीएफ आदि का पैसा भी कंपनी ने जमा नहीं किया है। कर्मचारी अब इसकी शिकायत भी संबंधित कार्यालयों में करने की तैयारी कर रहे हैं। और ऐसा होने पर कंपनी मुखिया पर राजस्व में हेराफेरी करने का शिकंजा भी कसने की आशंका है।
इनका कहना..
कल्पतरु कंपनी के एजेंट अभय सिंह की आत्महत्या मामले में पुलिस आरोपी की तलाश कर रही है। कंपनी मुख्यालय और आवास पर दबिश दी गई, मगर हत्थे नहीं चढ़ा। अन्य संभावित स्थानों पर दबिश दी जा रही है।' - डॉ. राकेश सिंह, एसएसपी मथुरा।
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