सरकारी आवास का करीब 3 लाख बाकी रूका है पेंशन
Reported by Desh Bandhu: कोरबा! सच कहा गया है कि यदि इंसान को परखना हो तो बुरे वक्त का होना जरूरी होता है। जो सुख में साथ हो और बुरे वक्त में किनारा कर ले तो ऐसे साथ का क्या औचित्य? कुछ ऐसे दौर से इन दिनों गुजर रहे हैं प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी नेता व पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर।
राजनीति में सितारा जब तक चमकता है, तब तक उसके इर्द गिर्द मंडराने वालों व चमक के सहारे काम करने वालों की कमी नहीं रहती। ऐसा ठाठ व अंदाज कभी रामपुर के विधायक रहे ननकीराम कंवर का होता था। आदिवासी वर्ग से कद्दावर नेताओं में शुमार ननकीराम का जीवन सादगीपूर्ण रहा है। गृहमंत्री जैसे पद पर रहते हुए भी वे अपने आदिवासी भोलेपन व बेबाक शैली को नहीं भूले बल्कि मौकों पर सरकार के खिलाफ ही आवाज उठायी। एक वो दौर था जब उनके समर्थक गृह जिला और राजधानी में दिन-रात मंडराया करते थे और उनके नाम की न सिर्फ रोटियां सेकीं बल्कि अट्टालिकाएं- शो रूम तक खड़ी कर लीं, लंबा-चौड़ा व्यापार स्थापित कर लिया। कभी पुलिस-थाना की नौबत आई तो काका के नाम का उपयोग कर दामन बचा लिए। जैसा कि वक्त सबके लिए एक समान नहीं रहता और काका के साथ भी यही हुआ। राजनीति के बुलंद सितारे वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में मद्धम होने लगे और काका को अपनी अपराजित रामपुर विधानसभा सीट गंवानी पड़ी। यहीं से उनका वक्त बदलने लगा। विधायकी नहीं रही तो सरकारी आवास, गाड़ी आदि सुविधाएं भी नहीं रहीं। हालांकि काका चुनाव हारने के कुछ महीने बाद तक राजधानी में मिले सरकारी आवास पर काबिज रहे, फलत: किराया जुड़ता रहा। पद गया तो वेतन भी मिलना बंद हो गया और पेंशन की प्रक्रिया किराया बकाया होने के कारण बाधित हो गई। काका पर करीब 3 लाख रूपए की देनदारी बकाया है, जिसका भुगतान के बाद ही उन्हें पेंशन मिलेगी। इस आशय के शासन द्वारा जारी सूचना ने राजनीति के गलियारे में काफी सुर्खियां बटोरी। राज्य विधानसभा व छग शासन की ओर से जारी सूचना का जवाब श्री कंवर दे चुके हैं। देखना है कि उनको पेंशन का लाभ कब से मिलने लगेगा और क्या वरिष्ठ नेता होने के नाते उन्हें किसी तरह की छूट का लाभ शासन देगी?
समर्थकों ने छोड़ा, खटारा का है साथ
पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर का नाम लेने पर अभी भी जेहन में एक कद्दावर छवि कौंध जाती है परंतु जिसके आगे-पीछे चलने वालों की फौज नहीं, दुनिया उसे सलाम नहीं ठोंकती। ताज्जुब की बात है कि ननकीराम का साथ उनकी खटारा जीप ने नहीं छोड़ा जबकि समर्थकों ने मानवीय स्वभाव दिखा दिया। चर्चा भी है कि जिस ननकीराम के नाम पर लोगों ने लाखों-करोड़ों कमाए, संपत्तियां बनाई, आज उन्हें अपने इस काका की तकलीफ क्यों नजर नहीं आती? रसूखदार समर्थक चाहें तो पल भर में बकाया 3 लाख रूपए निकाल सकते हैं, पर सोच शायद यहीं आकर अटक जाती है कि जो हमारे काम का नहीं, हम उनके काम क्यों आएं?
ईमानदार आदमी की फजीहत : ननकीराम
जीवन में कभी किसी से अपेक्षा नहीं रखने वाले काका को अपनी किस्मत पर पूरा भरोसा है और उम्मीद कायम रखी है कि जल्द पेंशन शुरू हो जाएगी। श्री कंवर ने बताया कि विस अध्यक्ष ने भी बकाया वसूली के लिए सूचना दी, जिसका जवाब उन्होंने दे दिया है। वैसे भी सरकार का पैसा वसूलने का काम उसके अमले का है न कि विस अध्यक्ष का। सरकार एक कर्मचारी का भी जीवन निर्वाह भत्ता पेंशन नहीं रोक सकती। मेरा मामला परीक्षण के लिए राज्य महालेखाकार के पास जा चुका है,जल्द ही पेंशन का निराकरण हो जाएगा। हंसते हुए यह भी कहा कि ईमानदार आदमी की फजीहत कैसे होती है, यह मेरे जरिए देखा-समझा जा सकता है।