मुकुल श्रीवास्तव: अपने देश में डाइरेक्ट सेलिंग (सीधी बिक्री) (Direct Selling Marketing) की शुरुआत पिछली सदी के अस्सी के दशक में हुई। उसी सदी के नब्बे के दशक में Amway, Oriflame, Avon जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से यह परिदृश्य बदल गया। उसी वक्त Modicare जैसी भारतीय कंपनी ने भी वस्तु वितरण व्यवसाय के इस नए क्षेत्र में कदम रखा। Direct Selling से तात्पर्य ऐसे व्यवसाय से है, जिसमें उत्पादक सीधे अपने उत्पाद को ग्राहकों तक खुद या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से पहुंचाता है। अभी अपने यहां Direct Selling के तहत स्वास्थ्य से संबंधित वस्तुएं, Cosmetics और घरेलू वस्तुओं का प्रति वर्ष 7,200 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। मगर इतना बड़ा कारोबार होने के बाद भी मुश्किलें कई हैं।
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (PHD Chamber of Commerce and Industry) के अनुसार, 2009-10 में डाइरेक्ट सेलिंग में 24 फीसदी की दर से वृद्धि हुई, जो 2011-12 में घटकर 22 फीसदी, 2012-13 में घटकर 12.2 फीसदी और 2013-14 में घटकर 4.3 फीसदी रह गई। इसकी वजह उचित नियम-कानून का न होना और प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (PCMCS) (Prize Chits and Money Circulation Schemes) अधिनियम है। इसी का फायदा उठाकर फर्जी चिटफंड कंपनियां डाइरेक्ट सेलिंग कारोबार के वैध मॉडल का नकल करती हैं। नतीजतन डाइरेक्ट सेलिंग का पूरा कारोबार ही शक के घेरे में आ जाता है।
हमें इस मामले में दूसरे देशों से सीखने की जरूरत है। अमेरिकी राज्यों में डाइरेक्ट सेलिंग के लिए अलग से कानून हैं, जबकि सिंगापुर में ऐसी किसी भी योजना को अवैध माना जाता है, जिसमें प्रवेश शुल्क लगता हो। चीन में भी इसके लिए कानून हैं। मगर अपने देश में तो यह तक स्पष्ट नहीं है कि डाइरेक्ट सेलिंग कंपनियां उपभोक्ता मंत्रालय के अधीन हैं या खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन।
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डाइरेक्ट सेलिंग एसोसिएशन {World Federation of Direct Selling Associations (WFDSA)} ने इस व्यवसाय में मानक ढांचा तैयार करने के लिए वर्ल्ड सेलिंग कोड ऑफ कंडक्ट (World Codes of Conduct) यानी आचार संहिता जारी की है। इससे इस उद्योग के नियम-कानून बनाने की दिशा में पहल हो सकती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि डाइरेक्ट सेलिंग कंपनियों को सिर्फ पिरामिड आधरित फर्जी कंपनियों ने ही नुकसान पहुंचाया है। मुद्दे कई और हैं। मसलन, स्वास्थ्य संबंधित उत्पाद प्रमाणित हैं या नहीं, इसका भरोसा नहीं होता। साथ ही, इन्हें बेचने वाले ज्यादातर अपने दोस्त-रिश्तेदारों को इसे बेचते हैं। यानी उत्पाद की गुणवत्ता को प्रचारित करने के बजाय जोर संबंधों को भुनाने पर रहता है। नतीजतन नए लोग डाइरेक्ट सेलिंग कंपनियों के उत्पादों से आसानी से नहीं जुड़ पाते।
बहरहाल, एक अंतर-मंत्रालयी समिति इस व्यवसाय के लिए अलग नियामक तैयार करने पर विचार कर रही है। इसी समिति के निर्णय पर भारत में इस व्यवसाय का भविष्य निर्भर है। हालांकि व्यावसायिक नजरिये से देखें, तो यह पर्याप्त क्षमता वाला व्यवसाय है। अपने देश में साठ लाख लोग डाइरेक्ट सेलिंग से जुड़े हुए हैं, जिसमें साठ प्रतिशत महिलाएं हैं। जाहिर है, यह रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ देश की आधी आबादी को भी सशक्त बना रहा है।