चिट फंड का नाम आते ही लोगों के मन में नकारात्मक धारणा आती है। इस कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि तमाम कहानियों में इस उद्योग को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। अब देश के 30,000 करोड़ रुपये के उद्योग के विकास के लिए उच्च स्तरीय समिति ने तमाम प्रस्ताव दिए हैं, जिसमेंं नाम में बदलाव किया जाना भी शामिल है। द बालुसरी बेनीफिट चिटफंड प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक टीएस शिवरामकृष्णन ने चिट फंड नाम से गूगल अलर्ट लगा रखा है। वह कहते हैं, 'एक दिन भी ऐसा नहीं बीतता, जबकि किसी प्रकाशन के किसी कोने में चिट पर कोई कहानी न हो।' उनका कहना है कि ये खबरें मल्टी लेवल मार्केटिंग योजनाओं, पोंजी योजनाओं, और कई अन्य विफल योजनाओं के बारे में होती हैं।
शिवरामकृष्णन कहते हैं कि वित्तीय योजनाओं की किसी भी विफलता को मीडिया चिट फंड से जोड़ देती है। वह कुछ समाचार पत्र की कतरन और ऑनलाइन रिपोर्ट भी दिखाते हैं, जिसमें बार बार पोंजी और चिट शब्दों का इस्तेमाल हुआ है। शिवरामकृष्णन कहते हैं, 'वे एक पैराग्राफ में पोंजी योजनाओं का वर्णन करते हैं, उसके बाद अगले ही अनुच्छेद में पंजीकृत चिट का नाम गिनाने लगते हैं। यह बहुत गलत काम है। हमने इसके लिए लिखने की कोशिश की। यहां तक कि मुकदमे की धमकी भी दी। लेकिन कोई असर नहींं पड़ा।'
इस तरह के दुष्प्रचार से उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि अब पंजीकृत चिटफंड की संख्या कुछ साल पहले के 1,000 से घटकर अब 100 रह गई है। इस तरह की नकारात्मक धारणा से दुखी चिटफंड कंपनियां अब नए नाम से चिट फंड उद्योग का कारोबार करने पर विचार कर रही हैं। श्रीराम समूह के निदेशक और आल इंडिया एसोसिएशन आफ चिट फंड्स (एआईएसीएफ) के वरिष्ठ सदस्य एस नटराजन ने कहा कि उद्योग ने नाम बदलने का सुझाव दिया है। वित्त मंत्रालय द्वारा गठित सलाहकार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नाम बदलने का प्रस्ताव स्वीकार करने में कोई नुकसान नहीं है और इन इकाइयों को 'बंधुता फंड' का नाम दिया जा सकता है। सलाहकार समिति ने इस क्षेत्र के विकास के लिए कुछ अन्य कदमों की सलाह भी दी है, जिसमें कानूनी और नियामक ढांचे की समीक्षा किया जाना भी शामिल है।
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