Chit fund companies From Not questioning And Neither police To Inquiry From meaning
Admin | 07 March, 2016 | 1345 | 3980
रायपुर.राजधानी में एक तरफ दो दर्जन से ज्यादा चिटफंड कंपनियां लोगों को लुभावने ऑफर देकर पैसे वसूल रही है दूसरी ओर पुलिस तीन दर्जन कंपनियों के खिलाफ ठगी का केस दर्ज कर चुकी है। पर सच चौंकाने वाला है।
एक भी कंपनी के संचालक ठगी करके भागने से पहले नहीं पकड़े गए। शिकायतें आईं, पुलिस ने केस दर्ज किया और एक-एक साल जांच की। इस दौरान कंपनी संचालकों ने पैसा समेटा और फरार हो गए। हालांकि जिला प्रशासन के पास अधिकार है।
चिटफंड कंपनी खुलने की सूचना मिलते ही प्रशासनिक अफसर सीधे जांच कर कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन ऐसा कभी नहीं किया। पुलिस ने भी कभी चिटफंड कंपनी खुलने की सूचना अफसरों को नहीं दी।
पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की लापरवाही को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। संकेत हैं कि कई इलाकों में अवैध चिटफंड कंपनियां पुलिस और अफसरों की सांठगांठ से चल रही है।
भास्कर ने ही शहर में अवैध तरीके से चल रही आधा दर्जन चिटफंड कंपनियों का भंडाफोड़ किया। पड़ताल के दौरान पता चला कि इनमें से कुछ कंपनियों ने थाने में एक औपचारिक पत्र लिखकर कारोबार चालू करने की सूचना दी, लेकिन पुलिस ने कलेक्टोरेट के अधिकारियों तक सूचना नहीं पहुंचायी।
इसी से पूरा सिस्टम जांच के घेरे में आ रहा है। पुलिस कार्रवाई तो कर रही है, लेकिन चिटफंड कंपनियों के बंद होने के बाद। कंपनियां जब लुभावने ऑफर देकर लेन-देन शुरू करती है, तब पुलिस या प्रशासनिक अमला खुद जाकर जांच नहीं कर रहा है कि वे किस नियम के तहत स्कीम चला रहे हैं।
कंपनी में निवेश करने वाले लोगों के पैसे उन्हें मिल सकेंगे इसकी क्या गारंटी है? शहर में एक भी चिटफंड कंपनी की जांच जिला और पुलिस विभाग ने खुद से नहीं की है।
प्रशासनिक या पुलिस के स्तर पर फर्जीवाड़ा पकड़ने के लिए जांच नहीं की जाती।
अफसर का तबादला होते ही जांच हो गई ठप
पिछले साल लगातार शिकायतें सामने आने के बाद जिला स्तर पर कमेटी बनाई गई। पुलिस के अफसरों के साथ मिलकर कमेटी ने कुछ कंपनियों की जांच की। दस्तावेजों की छानबीन के दौरान ही कमेटी के प्रमुख और जिला कोषालय अधिकारी का तबादला होने के बाद सब बंद हो गया। अब अफसर इस मामले की फाइल तक खोलकर नहीं देख रहे हैं। कोषालय के अफसरों का कहना है कि उनके पास इतना काम है कि वे कंपनियों की जांच नहीं कर सकते हैं।
फर्जीवाड़ा रोकने ही बनाया कड़ा कानून मगर...
चिटफंड कंपनियों का फर्जीवाड़ा बढ़ने के बाद ही सरकार ने रोकने के लिए कानून बनाया। कंपनियों के खिलाफ शिकायत के बिना ही कार्रवाई करने का सीधा अधिकार कलेक्टर को दिया गया। इसी में पेंच आ रहा है।
कंपनियां खुद प्रशासन को सूचना नहीं दे रही है। पुलिस का अमला जांच कर जिला प्रशासन को रिपोर्ट नहीं दे रहा है। जो कंपनियां पुलिस को चिट्ठ लिखकर दे रही है, उनकी जानकारी भी जिला प्रशासन को नहीं भेजी जा रही है। इसी का फायदा उठाकर कंपनियां लाखों निवेश करवा रहीं और पाॅलिसी की अवधि पूरी होने के पहले ही लाखों ठगकर भाग गई।
शहर के किसी भी थानों के पास भी सूची नहीं
शहर के किसी भी थाने में इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके क्षेत्र में कितनी चिटफंड कंपनियां चल रही है। कंपनी शुरू होने से पहले लैटरहैड एक पत्र थाने में पहुंचाया जाता है, जिसकी कोई लिस्टिंग नहीं होती है।
थाने वाले इनका रिकार्ड ऑनलाइन भी नहीं रखते हैं। सभी तरह की सूचनाओं के साथ ही कंपनी की सूचना भी साथ रख दी जाती है। जब कोई कंपनी फरार होती है तभी ही उसके दफ्तर की जांच शुरू की जाती है। जांच के दौरान ही पता चलता है कि कंपनी ने थाने में सूचना दी थी।
आरबीआई के सख्त नियम लेकिन पालन नहीं
नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के लिए द रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 के नियम
-द रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1943 की धारा 45 आई के तहत नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को आरबीआई से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लेना आवश्यक है।
-प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने वाली सभी कंपनियों की जांच के बाद आरबीआई उन्हें प्रमाण पत्र देती है।
- एक्ट की धारा 45 एमसी के अनुसार रिजर्व बैंक कंपनी एक्ट 1956 के अंतर्गत इन नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को बंद करने या समेटने या या वाइंड अप करने का दावा कर सकती है।
करोड़ों का कारोबार एजेंटों के भरोसे
पड़ताल में खुलासा हुआ है कि चिटफंड कंपनी चलाने वाले किसी भी कंपनी का मुख्यालय रायपुर में नहीं है। सभी कंपनियों के हेड ऑफिस दूसरे राज्यों में है। शहर में पूरा काम ब्रांच मैनेजर और एजेंटों के भरोसे चल रहा है।
चिटफंड कंपनी चलाने वाले शहर के महंगे कांप्लेक्स में अपना दफ्तर खोलते हैं। लोगों से रकम निवेश कराने के लिए एजेंटों की नियुक्ति की जाती है। उन्हें सैलरी के साथ बड़ी रकम कमीशन में देने का लालच दिया जाता है।
ये एजेंट शहरी क्षेत्रों के साथ ही गांवों में अपना जाल फैलाते हैं। कम पढ़ लिखे लोग इनका सॉफ्ट टारगेट होते हैं। कंपनी बंद होने के साथ ही एजेंट भी फरार हो जाते हैं।