रायपुर - तिल- तिल जोड़कर गरीबों ने जो पूंजी बनाई उसे दोगुना- तिगुना करने का लालच देकर चिटफंड कंपनियों ने जमा कराया और भाग निकलीं। इससे कई लोगों का सपना टूट गया, वहीं कइयों का बुढ़ापे का आधार छिन गया। न खेत बचा, न ही पैसे रहे और न ही रोजी-मजदूरी करने की ताकत है, ऐसे में वे मौत से बदतर जिंदगी जीने मजबूर हैं। यह पीड़ा है 1 जनवरी से बूढ़ापारा में धरना दे रहे उन लोगों की जिन्हें चिटफंड कंपनियों ने चूना लगाया है।
पीडितों ने गुरुवार को नईदुनिया को व्यथा सुनाते हुए बताया कि सरकार ने पहले जमीन बेचने मजबूर किया। खेती बेची तो जीने का सहारा जाता रहा, काफी सोच- विचार के बाद ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद से चिटफंड कंपनियों में वह पूंजी जमा कर दी, वह भी नहीं रही। ऐसे में मौत को गले लगाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
पाटन की रजमत यादव ने बताया कि सरकार ने खेत बेचने मजबूर दिया था। खेत बेचकर मिले 10 लाख रुपए को 5 साल के लिए फिक्स डिपॉजिट किया था। कंपनी वह पैसा लेकर भाग गई, अब न खेत है न पैसा। जीवन में केवल संघर्ष रह गया है।
रतनपुर के सेमरा से आई मतिबाई साहू ने बताया कि पति घासीराम देख नहीं सकते। ऐसे में उनसे सहारे की उम्मीद नहीं। गांव में खेत था, वह भी सड़क निर्माण की भेंट चढ़ गया। नौ लाख रुपए मिले थे, उसमें से 7 लाख रुपए को एफडी किया था। वे चार साल से रुपए वापसी के लिए कंपनी का चक्कर लगा रही हैं।
खम्हरिया (पाटन) की अनिता वर्मा ने बताया-सिलाई, कढ़ाई का काम करती हूं। 2013 से चिटफंड कंपनी में तीन प्लान शुरू किया, जो 10 लाख का था। मैच्युरिटी होने से पहले ही कंपनी ताला लगाकर भाग गई। मजदूरी करके जो कमाया वह भी डूब गया।
कोरबा से आई मिलन बाई ने बताया कि 5 लाख रुपए इस उम्मीद से जमा किया था कि वह जीवन में काम आएगा। पिता के साथ रहती हूं, वे 75 साल के हैं। सोचा था कि बाप-बेटी के लिए जमा पूंजी काम आएगी। लेकिन वह उम्मीद खत्म हो गई। पिता का सहारा तो मैं हूं, मगर मेरा सपना टूट गया।
बचेली से आए अर्जुन सिंह कर्मा ने बताया कि एनएमडीसी की नौकरी से 2007 में रिटायर हुआ। इसके पहले बेटे-बेटियों और पत्नी के नाम 15 लाख की मैच्युरिटी मिलने की आस में गाढ़ी कमाई जमा करता रहा। मगर अब न कमाने की ताकत रही और न ही नौकरी। ऐसे में बच्चों के लिए जो सपना देखा वह था वह चूर-चूर हो गया।
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